विश्वासघात | Vishwasghat

By: श्री गुरुदत्त - Shri Gurudatt
विश्वासघात | Vishwasghat by


दो शब्द :

इस पाठ में लेखक श्री गुरुदत्त ने भारतीय संस्कृति और सभ्यता के महत्व पर प्रकाश डाला है। उन्होंने भारतीय संस्कृति की प्राचीनता और उसकी पवित्रता को गंगा नदी के जल के माध्यम से उदाहरणित किया है। गंगा जो शुद्ध और पवित्र जल का प्रतीक है, उसी प्रकार भारतीय संस्कृति भी अपने मूल तत्वों में शुद्धता और दिव्यता रखती है, लेकिन समय के साथ इसमें अन्य तत्वों का मिश्रण हो गया है, जिससे यह गंदे पानी की तरह हो गई है। लेखक ने यह भी व्यक्त किया है कि भारतीय सभ्यता ने हमेशा अपने मूल सिद्धांतों को बनाए रखा है, जैसे पुनर्जन्म, कर्म, विद्या का मान, और समाज की उत्कृष्टता। उन्होंने यह चेतावनी दी है कि जब भारतीयों ने अपनी संस्कृति से दूर होकर विदेशी प्रभावों को स्वीकार किया, तब वे पतन की ओर बढ़े हैं। आज भी ऐसे तत्व मौजूद हैं जो भारतीय संस्कृति को दूषित कर रहे हैं, जैसे कि अंग्रेजियत और मुसलमानियत। अंत में, लेखक ने बताया है कि भारतीय संस्कृति का सही अनुभव करने के लिए लोगों को अपने मूल वेदों और शुद्धता की ओर लौटना होगा। यह केवल आध्यात्मिक दृष्टि के माध्यम से ही संभव है कि लोग भारतीय सभ्यता की वास्तविकता को समझ सकें। पाठ के अंत में, एक कथा प्रस्तुत की गई है जिसमें एक व्यक्ति अपने शिक्षक से मिलता है, जो अंडेमन से लौटे हैं और उनके जीवन में आए बदलावों का सामना कर रहे हैं। यह कथा व्यक्तिगत संबंधों और देश की राजनीतिक परिस्थितियों के संदर्भ में मानवीय भावनाओं का एक उदाहरण प्रस्तुत करती है।


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