वैशेषिक दर्शन | Vaisheshik Darshan

- श्रेणी: Vedanta and Spirituality | वेदांत और आध्यात्मिकता दार्शनिक, तत्त्वज्ञान और नीति | Philosophy भारत / India
- लेखक: पं राजाराम - Pt. Rajaram Profesar
- पृष्ठ : 166
- साइज: 5 MB
- वर्ष: 1919
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दो शब्द :
इस पाठ में कारण, सामग्री और उनके संबंध में कार्य के विभिन्न पहलुओं की चर्चा की गई है। कार्य केवल एक कारण से नहीं होता, बल्कि कई कारणों के संयोजन से होता है। उदाहरण के लिए, जब वस्त्र का निर्माण किया जाता है, तो इसमें तंतुओं, बुनकर, और अन्य सामग्री का योगदान होता है। ये सभी तत्व मिलकर कार्य की उत्पत्ति करते हैं, जिसे कारणसामग्री कहा जाता है। पाठ में यह बताया गया है कि कार्य की उत्पत्ति में तीन प्रकार के कारण होते हैं: समवायिक, असमवायिक, और निमित्त कारण। समवायिक कारण वे होते हैं जो मिलकर कार्य का निर्माण करते हैं, जैसे तंतुओं का संयोग। असमवायिक कारण उन तत्वों का समूह है जो कार्य में सहायक होते हैं, और निमित्त कारण वे होते हैं जो कार्य के लिए आवश्यक होते हैं, जैसे बुनकर। इससे यह स्पष्ट होता है कि इस संसार में हर वस्तु आपस में जुड़ी हुई है और उनमें समानता और भिन्नता दोनों पाई जाती हैं। उदाहरण के लिए, सभी गायों में समानता है, लेकिन वे एक दूसरे से भिन्न भी हैं। इसी तरह, मनुष्य, पशु, और अन्य जीवों में भी समानता और भिन्नता होती है। इस पाठ का मुख्य उद्देश्य यह समझाना है कि कैसे विभिन्न कारण और तत्व मिलकर कार्य का निर्माण करते हैं, और यह कि हमारे आस-पास की सभी वस्तुएं आपस में संबंधित हैं। इस प्रकार, ज्ञान की प्रक्रिया में सामान्य और विशेष के बीच का भेद भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह हमें वस्तुओं की पहचान और वर्गीकरण में मदद करता है।
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