यौवन और उसका विकास | Yauvan Aur Uska Vikas

- श्रेणी: Health and Wellness | स्वास्थ्य मनोवैज्ञानिक / Psychological
- लेखक: बाबू केशवकुमार ठाकुर - Babu Keshavkumar Thakur
- पृष्ठ : 132
- साइज: 6 MB
- वर्ष: 1930
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दो शब्द :
इस पाठ में लेखक ने युवा पीढ़ी की स्वास्थ्य और नैतिकता पर ध्यान केंद्रित किया है। वह यह बताते हैं कि एक देश का भविष्य उसके नवयुवकों पर निर्भर करता है, और यदि युवा स्वस्थ और शक्तिशाली नहीं हैं, तो देश की उन्नति संभव नहीं है। भारत में आजकल की स्थिति देखकर लेखक चिंतित हैं कि युवा वर्ग कमजोर होता जा रहा है। लेखक का मानना है कि युवाओं को किशोरावस्था में ब्रह्मचर्य और उसके गुणों के बारे में शिक्षा दी जानी चाहिए। समय के साथ, युवाओं में कामोत्तेजना उत्पन्न होती है, और यदि उन्हें इस विषय में ज्ञान नहीं दिया गया, तो वे गलत संगत में पड़ सकते हैं, जिससे उनके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। लेखक ने यह भी बताया है कि समाज में दो विचारधाराएँ हैं: एक यह कि काम-विज्ञान की शिक्षा देना व्यभिचार को बढ़ावा देता है, और दूसरी यह कि इसे समझना और सिखाना आवश्यक है। वे स्वामी विवेकानंद और चार्ल्स डार्विन के उद्धरणों के माध्यम से अपने विचारों को सही ठहराते हैं। इस पुस्तक का उद्देश्य युवाओं को काम-विज्ञान की सही जानकारी देना है, ताकि वे सुरक्षित और स्वस्थ जीवन जी सकें। लेखक ने यह भी उल्लेख किया है कि स्वप्न-दोष जैसी समस्याएं आम हैं, लेकिन इसके लिए उचित शिक्षा और उपायों की आवश्यकता है। पुस्तक में दिए गए अध्यायों के माध्यम से माता-पिता को यह समझाने का प्रयास किया गया है कि वे अपनी संतान को किस प्रकार सही मार्ग पर चलाने में मदद कर सकते हैं। लेखक ने यह भी कहा है कि यदि समाज इस विषय को समझने में असफल रहता है, तो यह सामाजिक पतन का कारण बनेगा। अंत में, लेखक ने पाठकों को इस पुस्तक को बिना किसी संकोच के पढ़ने की सलाह दी है, ताकि उन्हें उन महत्वपूर्ण बातों का ज्ञान हो सके जो उनके जीवन के लिए आवश्यक हैं।
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