अध्यात्मिक ज्ञान - सागर | Adhyatmik Gyaan - Sagar

- श्रेणी: Vedanta and Spirituality | वेदांत और आध्यात्मिकता साहित्य / Literature
- लेखक: नोरंगलाल - Noranglal
- पृष्ठ : 295
- साइज: 9 MB
- वर्ष: 1969
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दो शब्द :
इस पाठ में लेखक नोरंगलाल ने अपने आध्यात्मिक अनुभवों और विचारों को साझा किया है। उन्होंने अपने जीवन की शुरुआत और गुरु श्री बालारामजी की कृपा से प्राप्त ज्ञान का वर्णन किया है। लेखक ने बताया है कि वे एक साधारण परिवार से हैं और उनका जन्म एक गरीब कुल में हुआ। लेखक ने सत्संग और धार्मिक ग्रंथों के प्रति अपनी रुचि को व्यक्त किया है और यह बताया है कि कैसे उन्होंने गुरु की शरण में जाकर गहन आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया। उन्होंने यह भी उल्लेख किया है कि उनके विचारों में कोई त्रुटि हो, तो पाठक उन्हें क्षमा करें। पाठ में गुरु के महत्व को विशेष रूप से रेखांकित किया गया है। लेखक ने गुरु को आत्मा के उद्धार का मार्गदर्शक बताया है और कहा है कि केवल गुरु की शरण में जाकर ही ब्रह्म का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने यह भी बताया कि ज्ञान के बिना जीवन अंधकार में है और सही समझ के लिए आत्मा का जागरण आवश्यक है। लेखक ने यह भी कहा है कि संसार की भक्ति, प्रेम और सच्चे ज्ञान के माध्यम से ही आत्मा को परमात्मा में मिलाया जा सकता है। ज्ञान की महत्ता को समझाते हुए, उन्होंने यह बताया है कि ज्ञान से ही जीव को मोक्ष की प्राप्ति होती है। अंत में, लेखक ने प्रेम, भक्ति और सच्चे ज्ञान के मार्ग पर चलने का संदेश दिया है और कहा है कि इस मार्ग पर चलने से ही आत्मा की मुक्ति संभव है। उन्होंने अपने गुरु की कृपा और ज्ञान को अपने जीवन का आधार बताया है और पाठकों को इसी मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया है।
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