कल्याण अंक-२ | Kalyan Ank-2

- श्रेणी: Hindu Scriptures | हिंदू धर्मग्रंथ धार्मिक / Religious
- लेखक: चिम्मनलाल गोस्वामी - Chimmanlal Goswami जयदयाल गोयन्दका - Jaydayal Goyandka रामा गुप्ता - Rama Gupta हनुमान प्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar
- पृष्ठ : 802
- साइज: 57 MB
- वर्ष: 1954
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दो शब्द :
इस पाठ में भगवान के अद्वितीय स्वरूप और उनके सृष्टि में स्थान के बारे में चर्चा की गई है। इसमें बताया गया है कि भगवान ही सृष्टि का कारण हैं और वे सभी जीवों और पदार्थों में व्याप्त हैं। भगवान का वर्णन करते हुए कहा गया है कि वे सभी चीजों के मूल हैं और उनसे ही सृष्टि उत्पन्न होती है। इसी के साथ, यह भी बताया गया है कि पतिव्रता स्त्रियों का पति के प्रति समर्पण और उनकी सेवा से उन्हें उच्चतम धार्मिक स्थिति प्राप्त होती है। पतिव्रता धर्म का पालन करने वाली स्त्रियों को भगवान की कृपा प्राप्त होती है। इस संदर्भ में पुराणों का उल्लेख करते हुए, यह स्पष्ट किया गया है कि सतीत्व और पतिव्रता धर्म का पालन करने वाली स्त्रियों को भगवान के धाम की प्राप्ति होती है। भगवान की महिमा और उनके प्रति भक्ति का भी विशेष उल्लेख किया गया है। यह कहा गया है कि जैसे सोने का स्वरूप विभिन्न आभूषणों में परिवर्तित होता है, वैसे ही भगवान का स्वरूप भी सृष्टि के विभिन्न रूपों में दिखाई देता है। भगवान की उपासना करने से व्यक्ति आत्मिक उन्नति प्राप्त कर सकता है और इस सृष्टि के रहस्य को समझ सकता है। इस पाठ में ज्ञान और भक्ति के माध्यम से मुक्ति प्राप्त करने की प्रक्रिया का भी वर्णन किया गया है, जिसमें भगवान के प्रति समर्पण और उनकी महिमा का गुणगान करने का महत्व बताया गया है। अंत में, यह एक सन्देश है कि भक्ति और सच्चे धर्म का पालन करके व्यक्ति अपने जीवन को सार्थक बना सकता है।
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