अध्यात्म- ज्योतिष- विचार | Adhyatm - Jyotish - Vichar

By: ह॰ ने॰ काटवे - H. N. Katave
अध्यात्म- ज्योतिष- विचार | Adhyatm - Jyotish - Vichar by


दो शब्द :

इस पाठ में विभिन्न अध्यात्मिक और योग संबंधी सिद्धांतों का वर्णन किया गया है। इसमें विभिन्न चक्रों, नाड़ियों, और देवताओं का उल्लेख है, विशेष रूप से शिव और शक्ति के संबंध में। स्वाधिष्ठान चक्र के अलावा सभी चक्रों का आधिष्ठान शिव ही है। योगशास्त्र में शिव को पहले उपदेशक माना गया है और यह बताया गया है कि योग और ज्योतिष शास्त्रों का आपस में गहरा संबंध है। स्वास क्रियाओं का वर्णन करते हुए, दाहिनी नाड़ी (पिंगला) और बाईं नाड़ी (इड़ा) के माध्यम से शरीर में ऊर्जा के प्रवाह को समझाया गया है। दाहिनी नाड़ी सूर्य से संबंधित है जबकि बाईं नाड़ी चंद्रमा से, और इन्हीं के माध्यम से श्वास के परिवर्तन होते हैं। मणिपुर चक्र का विशेष महत्व है, जहाँ सूर्य का अधिष्ठान माना जाता है। भूख और ऊर्जा के संबंध को भी इस चक्र के माध्यम से समझाया गया है। इसके अलावा, अमृत और उसकी प्रभावशीलता का भी जिक्र किया गया है, जिसे योग में महत्वपूर्ण माना जाता है। अध्यात्म में महाब्रह्म और सृष्टि के आरंभ के सिद्धांत का भी विवेचन किया गया है, जिसमें बताया गया है कि कैसे अव्यक्त पंचमहाभूतों का निर्माण हुआ। अंत में, आकाश और वायु के संघर्ष से उत्पन्न ऊर्जा और नाद का उल्लेख किया गया है, जो सृष्टि के लिए महत्वपूर्ण है। इस प्रकार, यह पाठ योग, अध्यात्म, और सृष्टि के गूढ़ रहस्यों को समझने का प्रयास करता है, जिसमें शिव और शक्ति का केंद्रीय स्थान है।


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