राजयोग | Rajyog by


दो शब्द :

राजयोग, स्वामी विवेकानंद द्वारा प्रस्तुत एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है जो पातंजलि के योगसूत्रों पर आधारित है। यह पुस्तक राजयोग के सिद्धांतों, साधनाओं और उनके व्यावहारिक जीवन में उपयोग के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करती है। स्वामी विवेकानंद का उद्देश्य मानव मन को एकाग्र करना और उसे समाधि की अवस्था में पहुँचाना है। वे बताते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति के भीतर अनंत ज्ञान और शक्ति का भंडार है, जिसका जागरण राजयोग के माध्यम से किया जा सकता है। पुस्तक में साधना के विभिन्न सोपानों, जैसे प्राण का संयम, ध्यान, और समाधि का उल्लेख किया गया है। स्वामी विवेकानंद का मानना है कि मानव का मन स्वभाव से चंचल होता है, और उसे एकाग्र करने के लिए प्राणायाम और ध्यान की आवश्यकता होती है। यह ग्रंथ उन साधकों के लिए अत्यंत उपयोगी है, जो अपने मन और आत्मा को नियंत्रित करके उच्चतम साधना की प्राप्ति करना चाहते हैं। राजयोग का उद्देश्य है व्यक्ति को उसकी आंतरिक शक्ति से अवगत कराना और उसे आत्मा के ब्रह्म के साथ एकत्व की अनुभूति कराना। स्वामी विवेकानंद का यह ग्रंथ न केवल धार्मिक बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह मानव अनुभव और स्वानुभूति को प्राथमिकता देता है। पुस्तक का अनुवाद पंडित सूर्यकांत त्रिपाठी ने किया है, और इसके अन्य भागों का अनुवाद प्राध्यापक श्री दिनेशचंद्र जी ने किया है। पुस्तक का उद्देश्य साधकों को ध्यान और साधना की विधियों से परिचित कराना है ताकि वे अपने जीवन में आध्यात्मिक उन्नति कर सकें। इस प्रकार, राजयोग एक गहन और समृद्ध ग्रंथ है, जो योग की प्राचीनतम विधियों को आधुनिक संदर्भ में प्रस्तुत करता है और इसे व्यावहारिक जीवन में लागू करने की प्रेरणा देता है।


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