गुनाहों का देवता | Gunaho ka Devta by


दो शब्द :

इस उपन्यास का आरंभ इलाहाबाद के शहर के वर्णन से होता है, जिसमें लेखक ने शहर की अनियंत्रित और मुक्त संरचना का उल्लेख किया है। इलाहाबाद के मौसम और वातावरण को भी जीवंत तरीके से प्रस्तुत किया गया है, जहाँ सुबह की नाजुकता और फूलों की खुशबू का चित्रण किया गया है। कहानी में एक युवा पात्र, चंद्रकुमार कपूर, को दिखाया गया है, जो अल्फ्रेड पार्क में सुबह की सैर पर है। उसकी बातचीत ठाकुर साहब से होती है, जो उसके मित्र हैं। कपूर डॉक्टर शुक्ला की बेटी की लाइब्रेरी में सदस्यता के लिए इंतजार कर रहा है, और इस बीच उनकी बातचीत में उनके अध्ययन और व्यक्तिगत जीवन की झलक मिलती है। कहानी में कवि रवींद्र विसरिया का भी परिचय कराया गया है, जिसे ठाकुर साहब और कपूर के बीच बातचीत में शामिल किया जाता है। विसरिया का व्यक्तित्व कवि के रूप में गहराई से विचार करने वाला है, और वह प्रेम और कविता के संबंध पर विचार करता है। कपूर और विसरिया के बीच बातचीत में साहित्य, कविता और प्रेम के विषयों पर गहन चर्चा होती है। कुल मिलाकर, यह उपन्यास युवा जीवन, प्रेम, कविता, और अध्ययन की खोज पर केंद्रित है, जिसमें पात्रों के बीच संवाद और उनके विचारों के माध्यम से सामाजिक और सांस्कृतिक विशेषताओं को उजागर किया गया है।


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