पराशर संहिता | prahar sanhita
 
					
			- श्रेणी: ज्योतिष / Astrology संस्कृत /sanskrit
- लेखक: अज्ञात - Unknown
- पृष्ठ : 62
- साइज: 3 MB
- वर्ष: 1905
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दो शब्द :
यह पाठ धार्मिक और नैतिक विषयों पर आधारित है, जिसमें प्राचीन भारतीय ग्रंथों से उद्धरण और विचार प्रस्तुत किए गए हैं। इसमें प्रमुखता से उन सिद्धांतों का उल्लेख है जो धर्म, कर्म, और मानव के कर्तव्यों से संबंधित हैं। पाठ के आरंभ में एक ऋषि का वर्णन है, जो ध्यान में लीन है और ज्ञान की प्राप्ति के लिए प्रयासरत है। इसके बाद, विभिन्न ऋषियों और उनके उपदेशों का उल्लेख किया गया है, जो सत्य, धर्म, और ज्ञान के महत्व को दर्शाते हैं। पाठ में यह भी बताया गया है कि प्रत्येक युग में धर्म और आचार-व्यवहार में परिवर्तन होते हैं, जिससे मानव समाज पर प्रभाव पड़ता है। विशेष रूप से कलियुग में मानवता की स्थिति और उसके दुष्परिणामों का वर्णन किया गया है। इसके अतिरिक्त, पाठ में दान, शुद्धता, और आत्म-नियंत्रण के महत्व पर बल दिया गया है। यह बताया गया है कि व्यक्ति को अपने कर्मों के प्रति जागरूक रहना चाहिए, ताकि वह पुण्य और पवित्रता की ओर अग्रसर हो सके। समापन में, पाठ में नैतिकता, शुचिता और समाज के प्रति दायित्वों की आवश्यकता का उल्लेख किया गया है, जो सभी धार्मिक और आध्यात्मिक मार्ग पर चलने वाले व्यक्तियों के लिए महत्वपूर्ण हैं। इस प्रकार, यह पाठ मानवता के लिए प्रेरणा और मार्गदर्शन प्रदान करता है, जिससे व्यक्ति अपने जीवन में नैतिकता और धर्म का पालन कर सके।
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