भारतीय दर्शन-शास्त्र | Bhartiya Darshan-shastra

By: धर्मेन्द्रनाथ शास्त्री - Dharmandranath Shastri


दो शब्द :

यह पाठ भारतीय दर्शनशास्त्र, विशेषकर न्याय-वशेषिक शास्त्र का एक व्यापक और आलोचनात्मक परिचय प्रस्तुत करता है। लेखक धर्मेन्द्रनाथ शास्त्री ने अपने अनुभव के आधार पर इस विषय को विस्तार से समझाने का प्रयास किया है। उन्होंने यह उल्लेख किया है कि पिछले पच्चीस वर्षों में उन्होंने एम. ए. के छात्रों को भारतीय दर्शन पढ़ाने के दौरान महसूस किया कि न्याय-वशेषिक शास्त्र की जटिलताओं को समझाने के लिए एक सरल और सुस्पष्ट व्याख्या की आवश्यकता है। इस पुस्तक का उद्देश्य न्यायसिद्धान्तमुक्तावली की व्याख्या के माध्यम से भारतीय दर्शन के सम्पूर्ण संदर्भ में न्याय-वशेषिक के सिद्धान्तों और इतिहास का तुलनात्मक विवेचन प्रस्तुत करना है। लेखक ने यह भी स्पष्ट किया है कि भारतीय दर्शन पर कई ग्रंथ पहले से ही प्रकाशित हो चुके हैं, लेकिन उनमें से अधिकांश अंग्रेजी में हैं और हिंदी में उपलब्ध ग्रंथ अक्सर अनुवाद होते हैं, जिससे उनकी उपयोगिता सीमित हो जाती है। लेखक ने न्याय-वशेषिक और अन्य भारतीय दार्शनिक सम्प्रदायों के बीच के संबंधों का गहन अध्ययन किया है और इसे आधुनिक संदर्भ में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। उन्होंने न्याय-वशेषिक के सिद्धान्तों की मौलिक समस्याओं, जैसे न्याय और धर्म के बीच के भेद, तथा ज्ञान के विभिन्न प्रकारों पर चर्चा की है। इस पुस्तक में एक विस्तृत नामावली भी दी गई है, जिससे पाठक विभिन्न विषयों को बेहतर समझ सके। लेखक ने अपने सहयोगियों का भी उल्लेख किया है, जिनके योगदान के बिना यह ग्रंथ तैयार करना संभव नहीं था। अंततः, यह ग्रंथ भारतीय दर्शन के प्रति एक महत्वपूर्ण योगदान है, जिसका उद्देश्य छात्रों और शोधकर्ताओं के लिए उपयोगी सामग्री प्रदान करना है।


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