चिंतामणि (भाग -१] | ChintaMani [ Part-1]

By: रामचंद्र शुक्ल - Ramchandra Shukla
चिंतामणि (भाग -१] | ChintaMani [ Part-1] by


दो शब्द :

इस पाठ में मनोविकारों, सुख-दुःख और मानव जीवन में इनके महत्व पर चर्चा की गई है। लेखक रामचन्द्र शुक्ल ने बताया है कि छोटे बच्चे अपने दुःख का अनुभव केवल अपने स्तर पर करते हैं, जबकि बड़े होने पर वे दूसरों के दुःख को देखकर भी दुःख का अनुभव करते हैं, जिसे दया या करुणा कहते हैं। मनोविकारों का विकास व्यक्तिगत अनुभवों और इच्छाओं के आधार पर होता है। सुख और दुःख की अनुभूतियाँ शारीरिक क्रियाओं के रूप में प्रकट होती हैं, लेकिन इनका सही अनुभव केवल इच्छा के साथ होता है। लेखक ने यह भी बताया है कि मानव जीवन में भावनाएँ और मनोविकार महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। शासन व्यवस्था, धर्म, और सामाजिक मान्यताएँ इन मनोविकारों का उपयोग करती हैं। भय और लोभ मानव प्रवृत्तियों को संचालित करते हैं, और इनका उपयोग शक्तिशाली वर्ग अपने स्वार्थ के लिए करते हैं। इसके अलावा, उत्साह और साहस का भी वर्णन किया गया है। उत्साह में व्यक्ति कठिनाइयों का सामना करने के लिए तैयार होता है, जबकि साहस केवल कष्ट सहने की क्षमता को दर्शाता है। दानवीरता और वीरता के उदाहरण देते हुए लेखक ने बताया है कि सच्चा उत्साह तभी प्रकट होता है जब व्यक्ति आनंद के साथ अपने कष्टों का सामना करता है। सारांश में, पाठ यह दर्शाता है कि मनुष्य के मनोविकार न केवल उसकी प्रवृत्तियों का आधार हैं, बल्कि समाज और संस्कृति में भी इनका गहरा प्रभाव है। शुक्लजी ने मनोविकारों की जटिलता और उनकी सामाजिक उपयोगिता पर प्रकाश डाला है।


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