भक्ति योग | Bhakti Yoga

- श्रेणी: धार्मिक / Religious योग / Yoga हिंदू - Hinduism
- लेखक: स्वामी विवेकानंद - Swami Vivekanand
- पृष्ठ : 130
- साइज: 3 MB
- वर्ष: 1938
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दो शब्द :
स्वामी विवेकानंद जी के विचारों का सारांश और भक्ति-योग की महत्वपूर्ण बातें इस पाठ में प्रस्तुत की गई हैं। स्वामी विवेकानंद ने भक्ति को ईश्वर की प्राप्ति का सहज और स्वाभाविक मार्ग बताया है, जिसमें प्रेम का मुख्य स्थान है। उन्होंने नारद के भक्तिसूत्रों का उल्लेख करते हुए कहा है कि भगवान का प्रेम ही असली भक्ति है, जो व्यक्ति को सांसारिक इच्छाओं से मुक्त करता है। भक्ति और ज्ञान के बीच के संबंध को स्पष्ट करते हुए विवेकानंद ने कहा है कि भक्ति केवल साधन नहीं, बल्कि स्वयं साध्य भी है। उन्होंने यह भी बताया कि भक्ति में कट्टरता का खतरा होता है, जो अक्सर निम्नस्तरीय भक्ति से उत्पन्न होता है। जब भक्ति परिपक्व होती है, तो यह 'परा-भक्ति' में परिवर्तित हो जाती है, जिससे कट्टरता समाप्त हो जाती है। स्वामी जी ने यह भी स्पष्ट किया कि ज्ञान और भक्ति में कोई मूलभूत भेद नहीं है; दोनों अंततः एक ही लक्ष्य की ओर अग्रसर हैं। भक्ति की एक विशेषता यह है कि यह ईश्वर की प्राप्ति के लिए सबसे सरल मार्ग है, लेकिन इसे सही तरीके से समझने और अभ्यास करने की आवश्यकता है। इस प्रकार, विवेकानंद ने भक्ति-योग को एक महत्वपूर्ण साधना के रूप में प्रस्तुत किया है, जो व्यक्ति को न केवल ईश्वर के निकट लाती है, बल्कि उसे प्रेम और करुणा से भर देती है। भक्ति का अभ्यास करते हुए, व्यक्ति अपने अंतर्मन में शांति और संतोष प्राप्त करता है।
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