योगासन अवं साधना | Yogasan Avam Sadhana

- श्रेणी: धार्मिक / Religious योग / Yoga साहित्य / Literature हिंदू - Hinduism
- लेखक: श्री ढोलनदास अग्रवाल - Shree Dhoaldas Agrawal सत्यपाल - Satyapal
- पृष्ठ : 136
- साइज: 3 MB
- वर्ष: 1959
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दो शब्द :
इस पाठ में योग आसनों और साधना के महत्व पर चर्चा की गई है। लेखक डॉ. सत्यपाल और संपादक डॉ. विश्वनाथ प्रसाद सिन्हा के माध्यम से प्रस्तुत इस पुस्तक में भारतीय योग संस्थान के उद्देश्यों और कार्यों का वर्णन किया गया है। भारतीय संस्कृति की महानता और योग के माध्यम से मानवता के कल्याण की बात की गई है। योग संस्थान ने 'वसुधैव कुटुम्बकम्' के सिद्धांत को अपने आदर्श के रूप में अपनाया है और यह विश्वास जताया है कि योग ही मानवता को शांति और सुख प्रदान कर सकता है। पुस्तक में यह बताया गया है कि योग का अभ्यास करने से न केवल शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है, बल्कि मानसिक शांति भी प्राप्त होती है। योग संस्थान ने दिल्ली और अन्य प्रांतों में कई नि:शुल्क योग साधना केंद्र खोले हैं, जहां हजारों लोग योग का अभ्यास कर रहे हैं। इन केंद्रों में योगासन, प्राणायाम, ध्यान, और चक्षु व्यायाम जैसे विभिन्न विधाओं का अभ्यास कराया जाता है। लेखक ने मानव शरीर की रचना और उसके विभिन्न संस्थानों का भी वर्णन किया है, जिसमें अस्थि, मांसपेशियां, रक्त, मस्तिष्क आदि शामिल हैं। मानव शरीर को एक संपूर्ण और स्वायत्त यंत्र के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो अपनी स्वास्थ रक्षा स्वयं कर सकता है, यदि प्रकृति के नियमों का पालन किया जाए। योग संस्थान का यह भी कहना है कि वे राजनीतिक गतिविधियों से दूर रहकर केवल मानवता के कल्याण के लिए कार्यरत हैं। उनका लक्ष्य योग को व्यापक रूप से फैलाना और समाज में शांति स्थापित करना है। इस दृष्टिकोण से, योग संस्थान ने अपनी योजनाओं और कार्यों को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया है, जिसमें योग मंदिर और योग विश्वविद्यालय की स्थापना भी शामिल है। कुल मिलाकर, यह पाठ योग के महत्व, मानवता के कल्याण के लिए इसके उपयोग, और योग संस्थान के कार्यों का सार प्रस्तुत करता है।
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