दो शब्द :

इस पाठ का सारांश इस प्रकार है: यह ग्रंथ "आयुर्वेदीय क्रियाशारीर" एक महत्वपूर्ण आयुर्वेदिक कार्य है, जिसे वेद्यवाचस्पति आयुर्वेदमातंण्ड वैद्य यादवजी त्रिकमजी आचार्य द्वारा लिखा गया है। इस ग्रंथ का उद्देश्य आयुर्वेद के अध्ययन और शिक्षण में एक समग्र दृष्टिकोण प्रदान करना है, जिसमें प्राचीन और आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के ज्ञान को एकत्रित किया गया है। लेखक ने इस ग्रंथ में शरीर विज्ञान के दो प्रमुख पहलुओं - शरीर रचना विज्ञान और शरीर क्रियाविज्ञान का वर्णन किया है। शरीर रचना विज्ञान में शरीर के विभिन्न अंगों और अवयवों का अध्ययन किया जाता है, जबकि शरीर क्रियाविज्ञान में इन अवयवों की कार्यप्रणाली का विवरण दिया गया है। आयुर्वेद के अनुसार, शरीर की क्रियाएँ दोष, धातु और मल के संदर्भ में समझी जाती हैं। इस ग्रंथ की विशेषता यह है कि यह प्राचीन आयुर्वेदिक ज्ञान को आधुनिक चिकित्सा विज्ञान से जोड़ता है, ताकि विद्यार्थी और चिकित्सक दोनों को एक समग्र और यथार्थ ज्ञान प्राप्त हो सके। लेखक ने इस कार्य में अपने गुरु और अन्य विद्वानों के प्रति आभार प्रकट किया है, जिन्होंने उन्हें मार्गदर्शन और प्रेरणा दी। इस प्रकार, "आयुर्वेदीय क्रियाशारीर" एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जो आयुर्वेद के क्षेत्र में ज्ञान के प्रसार और अध्ययन में सहायक होगा। यह ग्रंथ शिक्षकों और छात्रों के लिए एक उपयोगी सामग्री के रूप में कार्य करेगा।


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