नागपुरी शिष्ट साहित्य | Nagpuri Sisth Sahitya

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दो शब्द :
छोटानागपुर, जो अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है, के निवासी हमेशा से उपेक्षित रहे हैं। यहाँ के लोग औद्योगीकरण के विकास से वंचित हैं, जिससे उनका जीवन स्तर नहीं सुधर रहा है। नागपुरी भाषा और साहित्य को भी इस उपेक्षा का शिकार होना पड़ा है। विद्वानों ने नागपुरी को भोजपुरी का विकृत रूप मान लिया है, जिसके परिणामस्वरूप नागपुरी की स्वतंत्र पहचान को खंडित किया गया है। लेखक ने इसी भ्रम को दूर करने और नागपुरी भाषा तथा साहित्य का गहन अध्ययन करने का निर्णय लिया। उन्होंने "नागपुरी और उसका शिष्ट साहित्य" विषय पर शोध कार्य किया और रांची विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। यह शोध कार्य नागपुरी साहित्य पर पहला व्यापक अध्ययन है, जिसमें लेखक ने विभिन्न संस्थाओं और व्यक्तियों से सहयोग प्राप्त किया। शोध कार्य में लेखक ने छोटानागपुर के ऐतिहासिक संदर्भ, नागपुरी साहित्य का सांस्कृतिक परिचय, ईसाई मिशनरियों द्वारा रचित नागपुरी साहित्य, पत्र-पत्रिकाओं की भूमिका, और नागपुरी साहित्य में छोटानागपुर की संस्कृति को दर्शाया है। छोटानागपुर की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में यह क्षेत्र पहले घने जंगलों से भरा हुआ था और इसका प्राचीन नाम "कर्कंखण्ड" था। महाभारत में इसका उल्लेख मिलता है, और समय के साथ इसे कई नामों से जाना गया। यहां के नागवशी राजाओं का शासन रहा है, और यह क्षेत्र विभिन्न ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी रहा है। लेखक ने नागवशी राजा फणिमुकुट राय की किंवदंती का उल्लेख करते हुए बताया कि नागवशी राजाओं की परंपरा का आरंभ इसी राजा से हुआ। छोटानागपुर की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर को संरक्षित करने की आवश्यकता है ताकि नागपुरी भाषा और साहित्य को उचित मान्यता मिल सके। लेखक ने अपने शोध कार्य के लिए सभी सहयोगियों और संस्थाओं का आभार व्यक्त किया है, और यह पुस्तक नागपुरी साहित्य के प्रति एक महत्वपूर्ण योगदान है।
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