संस्कृत साहित्य का इतिहास | Sanskrit Sahitya Ka Itihas

- श्रेणी: संस्कृत /sanskrit
- लेखक: वाचस्पति गैरोला - Vachspati Gairola
- पृष्ठ : 1114
- साइज: 64 MB
- वर्ष: 1960
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दो शब्द :
संस्कृत साहित्य का इतिहास एक महत्वपूर्ण और गहन अध्ययन है, जो भारतीय संस्कृति और ज्ञान की प्राचीन परंपराओं को उजागर करता है। लेखक डॉ. बहादुर चंद चाबड़ा ने इस विषय पर एक पुस्तक की रचना की है, जो संस्कृत साहित्य के इतिहास को समग्रता में प्रस्तुत करती है। आज के समय में संस्कृत एक बार फिर से महत्व प्राप्त कर रही है, और लोग इसके प्रति श्रद्धा और रुचि दिखा रहे हैं। संस्कृत भाषा ने भारतीय भाषाओं को समृद्ध करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, और इसका अध्ययन न केवल सांस्कृतिक बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी आवश्यक है। स्वतंत्रता के बाद, भारतीयों में अपने अतीत को जानने की उत्सुकता बढ़ी है, जिससे संस्कृत साहित्य का महत्व और भी बढ़ गया है। संस्कृत साहित्य का अध्ययन करने के लिए विभिन्न प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन इस विषय पर हिंदी में सामग्री की कमी है। पंडित वाचस्पति गेरोला की कृति "संस्कृत साहित्य का इतिहास" इस कमी को पूरा करने का प्रयास करती है। लेखक ने इस पुस्तक में विभिन्न विद्वानों के विचारों का समावेश किया है और सरल भाषा में विषय को प्रस्तुत किया है। लेखक ने संस्कृत साहित्य के विकास, उसकी विचारधाराओं और उसकी ऐतिहासिकता पर प्रकाश डाला है। इसके साथ ही, उन्होंने यह भी बताया है कि किस प्रकार प्राचीन भारत का ज्ञान मौखिक परंपरा से लिखित रूप में आया और कैसे हस्तलिखित पांडुलिपियों ने इस ज्ञान को सुरक्षित रखा। संस्कृत साहित्य के अध्ययन में वर्तमान युग का आरंभ 16वीं शताब्दी से होता है, जब यूरोप में साहित्यिक नवजागरण का दौर शुरू हुआ। 17वीं और 18वीं शताब्दी में संस्कृत पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विचार किया गया। आज भी, संस्कृत की हस्तलिखित पांडुलिपियों का संरक्षण और अध्ययन महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये भारतीय ज्ञान की अनमोल धरोहर हैं। इस प्रकार, "संस्कृत साहित्य का इतिहास" पुस्तक न केवल संस्कृत भाषा और साहित्य के महत्व को उजागर करती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि कैसे भारतीय संस्कृति को समझने के लिए संस्कृत का अध्ययन आवश्यक है।
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