दो शब्द :

यह पाठ स्वामी विवेकानंद के विचारों और उनकी भक्ति-योग की अवधारणा पर केंद्रित है। स्वामी विवेकानंद, जो श्री रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे, ने न केवल भारत में बल्कि अमेरिका में भी हिंदू धर्म और वेदान्त का प्रचार किया। उनकी पुस्तकों का सम्मान विश्वभर में किया जाता है। पुस्तक में भक्ति-योग की विशेषताओं का विस्तृत वर्णन है। भक्ति को प्रेम के माध्यम से ईश्वर की प्राप्ति का एक सरल और स्वाभाविक मार्ग बताया गया है। नारद भक्ति सूत्र का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि भगवान का परम प्रेम ही भक्ति है। भक्ति, ज्ञान और योग से श्रेष्ठ मानी गई है, क्योंकि यह साध्य और साधन दोनों का कार्य करती है। भक्ति की विशेषता यह है कि यह साधकों को ईश्वर के निकट ले जाती है, लेकिन इसकी एक असुविधा यह है कि यह कट्टरता का रूप भी धारण कर सकती है। यह कट्टरता भक्ति के निम्न स्तर पर होती है, जबकि जब भक्ति परिपक्व होती है, तो यह 'परा-भक्ति' में बदल जाती है, जिसमें घृणा और कट्टरता का कोई स्थान नहीं होता। अंततः पाठ में यह भी कहा गया है कि ज्ञान और भक्ति में कोई वास्तविक भेद नहीं है; दोनों अंततः एक ही लक्ष्य की ओर अग्रसर होते हैं। भक्ति का मार्ग सहज और स्वाभाविक है, लेकिन इसका सही उपयोग और साधना आवश्यक है। स्वामी विवेकानंद की शिक्षाएँ हमें भक्ति के गहरे अर्थों को समझने और जीवन में उसे अपनाने के लिए प्रेरित करती हैं।


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