श्रीमद्भगवतगीता | Shreemad Bhagwat Geeta

By: रामसुखदास - Ramsukhdas


दो शब्द :

श्रीमद्भगवद्गीता विश्व साहित्य में एक अद्वितीय स्थान रखती है, जो भगवान के श्रीमुख से प्रकट हुई एक दिव्य वाणी है। इसमें भगवान ने अर्जुन को माध्यम बनाकर मानवता के कल्याण के लिए महत्वपूर्ण उपदेश दिए हैं। इस ग्रंथ में भगवान के हृदय के गहरे भाव समाहित हैं, जिन्हें समझना कठिन है। स्वामी रामसुखदास जी महाराज ने इस ग्रंथ के गहरे अर्थों को समझने के लिए 'साधक-संजीवनी' नामक हिन्दी टीका लिखी है, जो साधकों के लिए मार्गदर्शक है। इस टीका में कई श्लोकों के नये और विलक्षण अर्थ प्रस्तुत किए गए हैं, जो साधकों को उनके साधना में सहायता करते हैं। वर्तमान समय में साधना के सरल उपायों का अभाव है, जिससे साधकों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। स्वामी जी ने इस टीका को केवल दार्शनिक विचारों के लिए नहीं, बल्कि साधकों के हित में लिखा है, जिससे सभी धर्मों के अनुयायी अपने-अपने अनुसार उद्धार के उपाय पा सकें। इस ग्रंथ का अध्ययन करने की अपील की गई है ताकि साधक इसे समझें और अपने जीवन में उतारें। गीता की टीकाओं की विविधता के बावजूद, गीता के भावों का अंत नहीं है और इसे समझने के लिए गहन अध्ययन की आवश्यकता है। गीता, उपनिषदों और ब्रह्मसूत्रों का सार है और इसमें सभी दर्शन सम्मिलित हैं। यह केवल ज्ञान नहीं, बल्कि अनुभव कराने वाली है, तथा यह सभी साधकों के कल्याण के लिए मार्गदर्शक है। भगवान की वाणी को सर्वोच्च माना गया है और गीता सभी रूपों की उपासना का समावेश करती है। यह एक समग्र दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है और सभी मतों के बीच सामंजस्य स्थापित करती है। गीता का अध्ययन करने से साधकों में राग-द्वेष मिटता है और परमात्मा की प्राप्ति होती है। इस प्रकार, गीता का अध्ययन और उसका पालन साधकों के लिए अत्यंत लाभदायक है।


Please share your views, complaints, requests, or suggestions in the comment box below.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *