नारद संहिता (१८२८) एक १६७५ | Narad Sanhita (1828) Ac 1675

By: वसतिराम शर्मा - Vasatiram Sharma


दो शब्द :

यह पाठ ज्योतिष शास्त्र और विशेष रूप से नारदसंहिता के विषय में है। नारदसंहिता को महर्षि नारद द्वारा रचित एक महत्वपूर्ण ज्योतिष ग्रन्थ माना जाता है, जिसमें ज्योतिष के सिद्धांत, संहिता और होरा के तीन मुख्य स्कन्ध शामिल हैं। यह ग्रन्थ मनुष्यों को शुभ और अशुभ कर्मों का ज्ञान देता है, जिससे वे अपने जीवन में सही निर्णय ले सकें। पाठ में यह बताया गया है कि नारदसंहिता में विभिन्न ज्योतिषीय विषयों का सरल रूप में वर्णन किया गया है, जैसे कि शास्नोपनयन, विवाह, यात्रा, गहप्रवेश, आदि। इसके माध्यम से मनुष्य अपने जीवन में सुख और शांति प्राप्त कर सकता है। महर्षि नारद का उद्देश्य इस ग्रन्थ के माध्यम से मानवता के लाभ के लिए ज्ञान फैलाना था। पाठ में नारदसंहिता की महिमा और इसके अध्ययन की आवश्यकता पर जोर दिया गया है, ताकि लोग इस ज्ञान का उपयोग कर सकें और अपने तथा दूसरों के जीवन में सुधार कर सकें। अंत में, पाठ में नारदसंहिता की संरचना, अध्यायों और विषयों का उल्लेख किया गया है, जो इस ग्रन्थ को अध्ययन के लिए उपयोगी बनाता है। यह पाठ इस बात पर भी प्रकाश डालता है कि ग्रन्थ का उद्देश्य लोगों को ज्योतिष के माध्यम से दिशा और मार्गदर्शन प्रदान करना है।


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