धन्वन्तरि | Dhanwantari

- श्रेणी: Aushadhi | औषधि Ayurveda | आयुर्वेद
- लेखक: आचार्य परमानन्दन शास्त्री - Aachary Parmanandan Shastri
- पृष्ठ : 801
- साइज: 58 MB
- वर्ष: 1954
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दो शब्द :
इस पाठ में तिब्बती आयुर्वेद और भारतीय आयुर्वेद के सिद्धांतों की तुलना की गई है। इसमें बताया गया है कि कैसे तिब्बती चिकित्सा में भी भारतीय चिकित्सा के समान विचारधारा अपनाई गई है। विशेषकर गर्भ में बच्चों की उत्पत्ति के विषय में दोनों चिकित्सा प्रणालियों के दृष्टिकोण में समानता देखने को मिलती है। भारतीय आयुर्वेद में यह मान्यता है कि शरीर का निर्माण माता के रज, पिता के शुक्र और आत्मा के संयोग से होता है। इसी प्रकार तिब्बती चिकित्सा में भी इसी तरह के सिद्धांतों का उल्लेख है, जैसे कि माता के रज और पिता के शुक्र की मात्रा से पुत्र या पुत्री का जन्म होता है। इसमें चरक संहिता के उद्धरणों का हवाला देते हुए यह बताया गया है कि तिब्बती आयुर्वेद भारतीय आयुर्वेद का अनुसरण करता है। पाठ में शरीर के विभिन्न अंगों की उत्पत्ति और उनके कार्यों का भी विवरण दिया गया है, जिसमें बताया गया है कि हृदय, मस्तिष्क, और अन्य अंग कैसे बनते हैं। इसके अलावा, पाठ में तिब्बती चिकित्सा की एक लंबी परंपरा और उसके विकास के बारे में भी चर्चा की गई है। यह भी उल्लेख किया गया है कि तिब्बती चिकित्सा में विभिन्न यंत्रों और औषधियों का उपयोग किया जाता है, जो कि आधुनिक चिकित्सा के समानांतर हैं। इस प्रकार, पाठ में तिब्बती और भारतीय आयुर्वेद के बीच की समानताएँ, उनके सिद्धांत, और चिकित्सा पद्धतियों का विस्तृत वर्णन किया गया है।
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