पवहारी बाबा | Pavhari Baba

- श्रेणी: जीवनी / Biography दार्शनिक, तत्त्वज्ञान और नीति | Philosophy
- लेखक: स्वामी विवेकानंद - Swami Vivekanand
- पृष्ठ : 44
- साइज: 2 MB
- वर्ष: 1950
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दो शब्द :
पुस्तक "पवहारी बाबा" स्वामी विवेकानंद द्वारा लिखी गई है और इसका उद्देश्य पाठकों को पवहारी बाबा के जीवन और उनकी आध्यात्मिक साधनाओं से परिचित कराना है। यह पुस्तक स्वामी विवेकानंद की श्रद्धा और निष्ठा का प्रतीक है। प्रस्तावना में बताया गया है कि भगवान बुद्ध ने मानवता की सहायता करने को सर्वोच्च कार्य माना, जबकि इसके लिए आत्मा का गहन अध्ययन आवश्यक है। स्वामी विवेकानंद इस बात पर जोर देते हैं कि महान कार्यों के पीछे गहरी अनुभव-शक्ति और एकाग्रता होती है। यदि कोई व्यक्ति इन्द्रिय सुखों से ऊपर उठकर उच्चतर क्षेत्रों का अनुभव करना चाहता है, तो उसे अपने जीवन में आदर्शों को अपनाना होगा। मनुष्य की प्रगति उसके ज्ञान और आदर्शों के अनुसार होती है। उन्नत व्यक्ति साधारण सुखों की अपेक्षा उच्चतम ज्ञान और अनुभव की ओर अग्रसर होते हैं। आदर्श जीवन में बलिदान, निःस्वार्थता और आत्मज्ञान का होना जरूरी है। आदर्श केवल विचार नहीं, बल्कि कार्य में परिणत होने चाहिए। स्वामी विवेकानंद ने बताया कि ज्ञान ही मनुष्य को ऊंचाई पर ले जाने वाला है, और वही अद्वितीय है जो मनुष्य को ध्यानमय जीवन जीने में सक्षम बनाता है। उन्होंने यह भी कहा कि कर्म और आदर्श एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं, और केवल कर्म के माध्यम से आदर्श की शक्ति प्रकट होती है। इस प्रकार, पुस्तक "पवहारी बाबा" स्वामी विवेकानंद के दृष्टिकोण से मानवता के कल्याण और आध्यात्मिक उन्नति का संदेश देती है। यह पाठकों को अपने जीवन में उच्च आदर्श अपनाने और ज्ञान की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा प्रदान करती है।
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