प्रेम रस सिद्धांत | Prem Ras Siddhant

- श्रेणी: दार्शनिक, तत्त्वज्ञान और नीति | Philosophy साहित्य / Literature
- लेखक: कृपालु दास - Kripalu Das
- पृष्ठ : 365
- साइज: 19 MB
- वर्ष: 1955
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दो शब्द :
इस पाठ में लेखक कृपालुदास ने जीव का चरम लक्ष्य और भगवान के अस्तित्व पर विचार किया है। उन्होंने बताया है कि सभी जीव केवल आनंद चाहते हैं, और इस आनंद के लिए विभिन्न साधनों की खोज में लगे रहते हैं। आनंद की प्राप्ति के लिए लोग जीवन, ज्ञान, स्वतंत्रता और शासन की इच्छा रखते हैं। लेखक का कहना है कि सभी इच्छाएँ अंततः आनंद प्राप्ति की ओर अग्रसर होती हैं। लेखक ने यह भी स्पष्ट किया है कि सीमित आनंद से संतोष नहीं मिलता, और यह आवश्यक है कि हम असीम आनंद की खोज करें, जो केवल भगवान के माध्यम से ही प्राप्त हो सकता है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि अनंत सुख की खोज में लोग हमेशा प्रयासरत रहते हैं, लेकिन कई लोग भगवान के अस्तित्व पर संदेह करते हैं। उनका तर्क है कि भगवान के बिना अनंत सुख की प्राप्ति संभव नहीं है। इस प्रकार, पाठ में यह संदेश दिया गया है कि आनंद की खोज में जीवों का स्वभाव हमेशा भगवान की ओर उन्मुख होता है, और सच्चे आनंद की प्राप्ति के लिए भक्ति और भगवान के प्रति समर्पण आवश्यक है।
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