वृहत हिंदी लोकोक्ति कोष | vrihat Hindi Lokoti Kosh

By: डॉ भोलानाथ तिवारी - Dr. Bholanath Tiwari
वृहत हिंदी  लोकोक्ति कोष  | vrihat Hindi Lokoti Kosh by


दो शब्द :

यह पाठ डॉ. भोलालाशंकर तिवारी द्वारा लिखित एक महत्वपूर्ण कार्य की चर्चा करता है, जिसमें उन्होंने हिंदी में लोकोक्तियों का एक कोश बनाने का प्रयास किया है। लेखक ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया है कि कैसे उन्होंने 1949 में इस विचार को अपनाया और विभिन्न बोलियों से लोकोक्तियाँ एकत्रित करने का कार्य शुरू किया। उन्होंने उल्लेख किया कि मुहावरों को एकत्रित करना अपेक्षाकृत आसान था, लेकिन लोकोक्तियों का संग्रह करना चुनौतीपूर्ण था, क्योंकि साहित्य में इनका प्रयोग सीमित था। लेखक की पत्नी और अन्य सहयोगियों ने इस कार्य में मदद की। उन्होंने बताया कि लगभग बीस वर्षों में, उन्होंने विभिन्न हिंदी बोलियों से हजारों लोकोक्तियाँ एकत्रित कीं। इसके बाद, एक बाढ़ के दौरान, उनके द्वारा संचित सामग्री का एक बड़ा हिस्सा नष्ट हो गया, जिससे उन्हें गहरा दुख हुआ। इसके बावजूद, उनके सहायक रामकंवल जी ने पुनः उन लोकोक्तियों को नई पांडुलिपियों में उतारने का कार्य किया। लेख में लोकोक्ति की परिभाषा और महत्व पर भी चर्चा की गई है। इसे अनुभव का सागर बताया गया है, जो जन-मानस की आवाज़ होती है। लोकोक्तियाँ जीवन के अनुभवों से जुड़ी होती हैं और व्यक्ति को मार्गदर्शन करती हैं। लेखक ने लोकोक्तियों की परिभाषा को विस्तार से प्रस्तुत करते हुए कहा कि ये चुटीली, सारगर्भित, और लोकप्रचलित उक्तियाँ होती हैं, जिनका उपयोग विभिन्न संदर्भों में किया जाता है। इस प्रकार, यह पाठ हिंदी साहित्य में लोकोक्तियों के संग्रह और उनके महत्व को उजागर करता है, साथ ही लेखक के कठिन परिश्रम और सहयोगियों के योगदान को भी दर्शाता है।


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