पाश्चात्य दर्शन | Pashchatya Darshan

- श्रेणी: Cultural Studies | सभ्यता और संस्कृति Vedanta and Spirituality | वेदांत और आध्यात्मिकता बौद्ध / Buddhism
- लेखक: चन्द्रधर शर्मा - Chandradhar Sharma
- पृष्ठ : 234
- साइज: 33 MB
- वर्ष: 1964
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दो शब्द :
पाश्चात्य दर्शन का अध्ययन समाज, सभ्यता और संस्कृति की गहराई को समझने के लिए महत्वपूर्ण है। इस पुस्तक में लेखक ने पाश्चात्य दर्शन के उद्भव और विकास का संक्षेप में विवेचन किया है, जिसमें ग्रीक, ईताई और आधुनिक विचारधाराओं का समावेश है। ग्रीक दर्शन का अध्ययन करना पाश्चात्य दर्शन को समझने के लिए आवश्यक है क्योंकि इसके सिद्धांतों का प्रभाव आधुनिक युग के दर्शन पर स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। ग्रीक दार्शनिकों ने पहले जड़ जगत का विवेचन किया और फिर चेतन आत्मा का विश्लेषण किया। थेलीज, एनेक्जिमेण्डर और एनेक्जिमेनीज जैसे प्रारंभिक दार्शनिकों ने विचारों का सूत्रपात किया, जिसमें जल, वायु और अनंतता के सिद्धांत शामिल हैं। एनेक्जिमेण्डर ने विकासवाद के विचार को प्रस्तुत किया और पृथ्वी के गोल होने का ज्ञान दिया। पाइथेगोरस ने गणित और रहस्यवाद का समन्वय किया। लेखक ने यह पुस्तक विशेष रूप से बी.ए. और एम.ए. के विद्यार्थियों के लिए लिखी है, ताकि पाश्चात्य दर्शन की जटिलताओं को सरल और स्पष्ट रूप में प्रस्तुत किया जा सके। इसमें महत्वपूर्ण विचारों और सिद्धांतों का समावेश किया गया है, जबकि अनावश्यक विस्तार और अप्रासंगिक जानकारी को हटाया गया है। लेखक ने अपने अध्ययन के दौरान विभिन्न दार्शनिकों के ग्रंथों का सहारा लिया है, लेकिन अपनी दृष्टि और मौलिक विचारों को भी जोड़ा है। इस पुस्तक में पाश्चात्य दर्शन की पारिभाषिक शब्दावली भी शामिल की गई है, जो विद्यार्थियों के लिए सहायक होगी। लेखक ने भारतीय दर्शन के संदर्भ में भी पाश्चात्य विचारों की व्याख्या करने का प्रयास किया है। इस प्रकार, यह पुस्तक पाश्चात्य दर्शन के अध्ययन के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत है और पाठकों को इससे लाभ उठाने की उम्मीद है।
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