सुनीता | Sunita

- श्रेणी: उपन्यास / Upnyas-Novel कहानियाँ / Stories
- लेखक: जैनेन्द्र कुमार - Jainendra Kumar
- पृष्ठ : 192
- साइज: 7 MB
- वर्ष: 1941
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दो शब्द :
इस पाठ में हरिप्रसन्न और श्रीकान्त के बीच की बातचीत और उनके विचारों का विवरण है। हरिप्रसन्न ने श्रीकान्त के घर पर कुछ समय बिताया है। वह अपने अकेलेपन को महसूस करता है और श्रीकान्त की पत्नी सुनीता के बारे में सोचता है। हरिप्रसन्न का ध्यान सुनीता के नाम पर है, जो कि विभिन्न रूपों में प्रस्तुत होता है, जैसे "सुनीता", "श्रीमती सुनीतादेवी", और "सुनीता श्रीकान्त"। पाठ में हरिप्रसन्न का मन मंथन करता है कि विवाह के बाद औरतें कैसे अपने नाम को खो देती हैं और यह विचार उसे कुछ कुण्ठित करता है। वह समझता है कि विवाह का मतलब यह नहीं है कि एक महिला को अपनी पहचान खोनी पड़े। जब श्रीकान्त घर लौटता है, तो वह हरिप्रसन्न को बताता है कि घर में कोई नौकर नहीं है, इसलिए उसे फल लाने के लिए भेजा गया था। हरिप्रसन्न इस बात पर विचार करता है कि पत्नी को दासी नहीं होना चाहिए और यह सोचता है कि घर के कामों में मदद के लिए नौकर रखना आवश्यक है। पाठ का अंत उस स्थिति से होता है जब सुनीता खाना बनाने में व्यस्त होती है, और हरिप्रसन्न उसे देखकर सोचता है कि यह महिला कितनी मेहनत कर रही है। इस प्रकार, पाठ में विवाह, पहचान, और घरेलू जीवन की वास्तविकताओं पर विचार किया गया है।
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