पृथ्वीराज चौहान | Prithviraj Chauhan

By: विश्वनाथ पोखरैल - Vishwanath Pokharail
पृथ्वीराज चौहान | Prithviraj Chauhan by


दो शब्द :

यह पाठ पृथ्वीराज चौहान के जीवन के प्रारंभिक चरणों का वर्णन करता है। पृथ्वीराज, जो एक वीर और साहसी योद्धा के रूप में जाने जाते हैं, का बाल्यकाल से ही युद्ध कौशल में रुचि थी। उन्होंने अपने गुरु श्रीराम जी से युद्ध की शिक्षा ली और अपने समवयस्क मित्रों के साथ युद्ध खेलों में भाग लेते थे। उनके मित्रों में कई सामंत शामिल थे, जिनके साथ वे गढ़-विजय और सेना संचालन के खेल खेलते थे। पृथ्वीराज के पिता सोमेश्वर जी का राज्य विस्तार गुजरात तक फैला था, जिससे भीमदेव सोलंकी, जो गुजरात के राजा थे, में ईर्ष्या की भावना उत्पन्न हुई। भीमदेव ने पृथ्वीराज को पकड़ने के लिए गुप्तचर नियत किए। एक दिन शिकार के बहाने पृथ्वीराज पर हमला हुआ, लेकिन वह भागने में सफल रहे। धीरे-धीरे, पृथ्वीराज का नाम और वीरता फैलने लगी, जिससे अन्य राजाओं की दृष्‍टियाँ उन पर लगीं। पृथ्वीराज ने राजगद्दी पर बैठने के बाद कई युद्धों में भाग लिया और अपनी वीरता से कई दुश्‍मनों को पराजित किया। इस दौरान, पृथ्वीराज की आँखों पर सोने की पट्टी बंधी रहती थी, जो युद्ध के समय के लिए थी। पाठ में यह भी बताया गया है कि पृथ्वीराज की शादी नाहर राय की कन्या से तय हुई थी, लेकिन बाद में नाहर राय ने अपने वचन से मुकर गए। इस अपमान के प्रतिशोध के लिए सोमेश्वर जी ने पृथ्वीराज को नाहर राय पर आक्रमण करने का आदेश दिया। युद्ध में पृथ्वीराज ने विजय प्राप्त की और नाहर राय की कन्या से विवाह किया। यह पाठ पृथ्वीराज के जीवन के विभिन्न पहलुओं को उजागर करता है, जिसमें उनकी वीरता, युद्ध कौशल, और राजनैतिक दांव-पेच शामिल हैं। पाठ में यह भी स्पष्ट किया गया है कि पृथ्वीराज का जीवन एक योद्धा के रूप में संघर्ष और विजय की गाथा है।


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