योग दर्शन तथा योग विंशिका | Yoga darshan or yoga vinshika

- श्रेणी: ज्ञान विधा / gyan vidhya योग / Yoga
- लेखक: सुखलाल - Sukhalal
- पृष्ठ : 232
- साइज: 5 MB
- वर्ष: 1922
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दो शब्द :
इस पाठ में योग और जैन दर्शन के संबंध में विभिन्न विचारों का संक्षेप में वर्णन किया गया है। लेखक ने प्रस्तावना के माध्यम से पाठकों को इस पुस्तक के महत्व के बारे में बताया है, जिसमें योगसूत्र और योगवृत्ति की चर्चा की गई है। पाठ में यह भी उल्लेख किया गया है कि योग और जैन दर्शन में विभिन्न सिद्धांतों का कैसे मिलान और विरोध किया गया है। इसके साथ ही, महर्षि पतंजलि और आचार्य हरिभद्र जैसे प्रमुख व्यक्तियों का संदर्भ दिया गया है। लेखक ने यह स्पष्ट किया है कि योगसूत्रों की व्याख्या के लिए जो वृत्तियाँ प्रस्तुत की गई हैं, वे मुख्य रूप से सांख्य सिद्धांत के आधार पर हैं। लेखक ने यह भी बताया है कि इस पुस्तक में योग दर्शन और जैन दर्शन के बीच मतभेद और समानताएँ दर्शाई गई हैं, जिससे पाठकों को दोनों दर्शन के बीच की गहरी समझ विकसित करने में मदद मिलेगी। पुस्तक में जैन दर्शन के सिद्धांत स्याह्वाद को भी समझाया गया है, जो प्रामाणिकता और विविधता का सम्मान करता है। लेखक का उद्देश्य पाठकों को यह बताना है कि योग और जैन दर्शन के बीच का संबंध केवल मतभेदों का नहीं, बल्कि एक गहन संवाद का है, जिसमें दोनों पक्षों के विचारों का आदान-प्रदान किया गया है। अंत में, लेखक ने पाठकों से आग्रह किया है कि वे इस पुस्तक के माध्यम से योग और जैन दर्शन के समृद्ध विचारों का अध्ययन करें और उन्हें अपने जीवन में लागू करने का प्रयास करें।
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