इच्छा शक्ति ओझा इंद्रजाल | iccha Shakti Ojha Inderjal

By: जयशंकर प्रसाद - jayshankar prasad


दो शब्द :

इस पाठ में योग और उसके अभ्यास पर चर्चा की गई है। इसे इस प्रकार संक्षेपित किया जा सकता है: पाठ का मुख्य विचार यह है कि संसार में कोई भी कार्य भगवान की इच्छा के बिना नहीं होता, लेकिन मनुष्यों को अपने कर्म करने चाहिए। यह बताया गया है कि कर्म मनुष्य का धर्म है और फल देने वाला ईश्वर है। दूसरों का भला करने के बाद ही व्यक्ति को अपने भले की चिंतन करनी चाहिए। इसके अलावा, यह भी सलाह दी गई है कि किसी भी प्रयोग या साधना से पहले विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेना चाहिए। पुस्तक में विभिन्न प्रकार के यंत्रों, मंत्रों और साधनाओं का उल्लेख है, जो धन, स्वास्थ्य, और सिद्धियों की प्राप्ति के लिए प्रयोग किए जा सकते हैं। इसमें विशेष रूप से योगाभ्यास, प्राणायाम, और विभिन्न शोधन विधियों का वर्णन किया गया है। योग के विभिन्न आसनों और प्राणायाम विधियों के माध्यम से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ाने की बात की गई है। योगाभ्यास के लिए उचित आहार और नियमों का पालन करने की आवश्यकता है। पाठ में बताया गया है कि प्राणायाम की तीन श्रेणियाँ हैं - कनिष्ट, मध्यम, और उत्तम, और किस प्रकार से उन्हें करना चाहिए। इसके साथ ही, शोधन क्रियाओं का महत्व भी बताया गया है, जो शरीर के दोषों को दूर करने में सहायक होती हैं। पाठ में योगाभ्यास के समय, स्थान, और विधियों का विस्तृत वर्णन किया गया है, जिससे पाठक को योग साधना में सहायता मिल सके। सारांश में, यह पाठ योग और साधना के महत्व, विधियों और नियमों पर प्रकाश डालता है, जिससे व्यक्ति अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकता है।


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