अथ संस्कारविधि | Ath Sanskarvidhi

By: दयानंद सरस्वती - Dayanand Saraswati


दो शब्द :

इस पाठ का सारांश इस प्रकार है: यह पाठ संस्कार विधियों के बारे में है, विशेष रूप से गर्भाधान और पुंसवन संस्कारों के संबंध में। इसमें विभिन्न मंत्रों का उल्लेख किया गया है, जिन्हें संस्कार करते समय उच्चारित करना आवश्यक है। गर्भाधान क्रिया का समय विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, और यह तब किया जाना चाहिए जब दंपति का स्वास्थ्य अच्छा हो और वे एक-दूसरे के प्रति प्रेमपूर्ण हों। पाठ में गर्भाधान के लिए आवश्यक औषधियों और सामग्रियों का प्रयोग बताया गया है, जैसे कि विभिन्न जड़ी-बूटियाँ और घी। इसके साथ ही, गर्भाधान के बाद संतान के गुणों को बढ़ाने के लिए कुछ विशेष आहार और रीतियों का पालन करने की सलाह दी गई है। पुंसवन संस्कार का समय गर्भ के स्थिर होने के बाद के दूसरे या तीसरे महीने में निर्धारित किया गया है, जिसका उद्देश्य पुरुष संतान की प्राप्ति करना है। इस दौरान भी मंत्रों का उच्चारण और विशेष विधियों का पालन आवश्यक है। इस प्रकार, पाठ में भारतीय परंपरा में संतान उत्पत्ति के लिए किए जाने वाले संस्कारों की विस्तृत जानकारी दी गई है, जिसमें मंत्र, औषधियों, और विधियों का उल्लेख किया गया है।


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