राजस्थान पुरातन ग्रंथमाला | Rajasthan Puratan Granthmala

- श्रेणी: इतिहास / History भारत / India समकालीन / Contemporary
- लेखक: फतह सिंह - Fatah Singh
- पृष्ठ : 82
- साइज: 4 MB
- वर्ष: 1968
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दो शब्द :
यह पाठ "राठौड़ वंश की उत्पत्ति" से संबंधित है, जिसमें राठौड़ वंश के इतिहास और उनकी उत्पत्ति के विभिन्न मतों का वर्णन किया गया है। प्रस्तुत संग्रह में "राठौड़ वंश री विगत" और "राठौड़ां री वंशावली" का उल्लेख है। लेखक ने राठौड़ वंश के इतिहास को समझने के लिए विभिन्न प्राचीन ग्रंथों और प्रमाणों का सहारा लिया है। लेखक ने राठौड़ वंश के आदिपुरुष की कथा का उल्लेख किया है, जिसमें कहा गया है कि राठौड़ का नाम उसके पिता की 'राठ' को तोड़ने की घटना से उत्पन्न हुआ। इसके अलावा, लेखक ने राठौड़ वंश के संबंध में विभिन्न परंपराओं और मान्यताओं का उल्लेख किया है, जिसमें राठौड़ को चंद्रवंशी, सूर्यवंशी और अन्य वंशों से जोड़ा गया है। इसमें यह भी उल्लेख किया गया है कि राठौड़ वंश की उत्पत्ति का संबंध एक प्राचीन राष्ट्र-परंपरा से है, जो ऋग्वेद से लेकर वर्तमान समय तक विद्यमान है। विभिन्न विद्वानों के मतों के आधार पर, राठौड़ वंश की उत्पत्ति दक्षिण भारत से मानी जाती है और समय के साथ यह राजस्थानी क्षेत्र में विस्तारित हुआ। पुस्तक की भूमिका में लेखक ने यह स्पष्ट किया है कि राठौड़ वंश की उत्पत्ति और उनके इतिहास का अध्ययन महत्वपूर्ण है, और इस ग्रंथ के माध्यम से वह राठौड़ वंश के इतिहास को समझाने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा है कि दूसरे भाग के प्रकाशन के लिए प्रतीक्षा करनी होगी, ताकि तुलनात्मक अध्ययन किया जा सके। अंत में, लेखक ने जिनविजयजी के योगदान के लिए धन्यवाद दिया है और पुस्तक के विलंबित प्रकाशन के लिए खेद व्यक्त किया है।
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