दो शब्द :

हिन्दुस्तानी एकेडेमी की स्थापना 1325 में यज्ञनारायण उपाध्याय द्वारा प्रांतीय धारा सभा में प्रस्तावित की गई थी, जिसे एकमत से स्वीकार किया गया। 1627 में एकेडेमी की स्थापना हुई, जिसका उद्घाटन सर विलियम मैरिस ने किया। इसका मुख्य उद्देश्य हिन्दी और उर्दू साहित्य की रक्षा, वृद्धि और उन्नति करना है। एकेडेमी ने हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं के साहित्य को संरक्षित करने, मौलिक कृतियों को प्रोत्साहित करने, अनुवाद का कार्य करने और विद्वानों को सम्मानित करने जैसे कई कार्य किए हैं। एकेडेमी द्वारा अब तक 150 हिन्दी और 50 उर्दू पुस्तकें प्रकाशित की जा चुकी हैं। इसके अलावा, एकेडेमी ने "हिन्दुस्तानी" नामक त्रैमासिक शोध पत्रिका का प्रकाशन किया, जो हिन्दी-उर्दू साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण मानी जाती है। एकेडेमी का पुस्तकालय भी महत्वपूर्ण है, जिसमें 15,000 से अधिक ग्रंथ और पत्रिकाएं हैं, लेकिन कुछ समय के लिए आर्थिक कठिनाइयों के कारण बंद रहा। एकेडेमी ने अनेक योजनाएं भी बनाई हैं, जैसे उपभाषा कोश, दुर्लभ पाण्डुलिपियों का प्रकाशन और मौलिक साहित्य का प्रकाशन। स्वतंत्रता के बाद, अनेक साहित्यिक संस्थाएं एकेडेमी के अनुकरण में स्थापित हुईं। एकेडेमी ने शोध कार्य को प्रेरित किया और हिन्दी साहित्य के स्तर को उन्नत करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। अंत में, यह कहा जा सकता है कि एकेडेमी ने हिन्दी नाटक और रंगमंच के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। नाटक जीवन की दृश्य अनुकृति है और इसे सामाजिक संशोधन का माध्यम माना जाता है। हिन्दी नाटक ने अनूदित और पौराणिक रूपों से होते हुए आधुनिक रंगमंच की ओर बढ़ने की कोशिश की है, लेकिन इसके विकास में कुछ बाधाएं भी रही हैं। रंगमंच और नाट्य साहित्य के बीच की खाई को पाटे बिना नाटक का उपयोग-सम्बन्धी समाधान कठिन है।


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