तांत्रिक बौद्ध साधना और साहित्य | Tantrik Bodh Sadhana Aur Sahitya

By: नागेन्द्र नाथ उपाध्याय - Nagendr Nath Upadhyay


दो शब्द :

इस पाठ में तांत्रिक साधना और योग के विभिन्न पहलुओं का विस्तार से वर्णन किया गया है। लेखक नागेंद्रनाथ उपाध्याय ने योग के छः अंगों - प्रत्याहार, ध्यान, प्राणायाम, धारणा, श्रनुस्मति और समाधि - के माध्यम से साधक की यात्रा को समझाया है। पाठ में बताया गया है कि योग का अंतिम लक्ष्य है निरावरण प्रकाश की प्राप्ति, जो तभी संभव है जब साधक सभी प्रकार के आवरणों से मुक्त हो जाए। लेखक ने बोधिसत्त्व की अवधारणा को भी समझाया है, जिसमें पाँच अभिज्ञाओं का उदय आवश्यक होता है। साधक को पहले मंत्रसिद्धि के लिए प्रयत्नशील रहना होता है। इसके साथ ही, कुंडलिनी शक्ति का जागरण और बिंदु का उत्थान भी महत्वपूर्ण हैं। जब बिंदु ऊर्ध्वगति करता है, तब साधक दिव्य दृष्टि और ज्ञान प्राप्त करता है। पाठ में यह भी स्पष्ट किया गया है कि तांत्रिक साधना में दीक्षा का महत्व है। बिना दीक्षा के सत्य ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती। सदगुरु की कृपा के बिना साधना में सफलता नहीं मिलती। तांत्रिक साधना के माध्यम से साधक को आंतरिक शुद्धता और दिव्य अनुभव की प्राप्ति होती है, जिससे वह जीवन के अंतिम लक्ष्य की ओर अग्रसर होता है। इस प्रकार, यह पाठ तांत्रिक साधना की गहराई और उसके रहस्यों को उजागर करता है, जिसमें साधना, ज्ञान और गुरु की भूमिका को महत्वपूर्ण माना गया है।


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