बृहत्संहिता | BrihatSamhita

- श्रेणी: ज्योतिष / Astrology दार्शनिक, तत्त्वज्ञान और नीति | Philosophy
- लेखक: बलदेव प्रसाद मिश्र - Baldev Prasad Mishra
- पृष्ठ : 510
- साइज: 21 MB
- वर्ष: 1936
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दो शब्द :
इस पाठ में ज्योतिष और समय के अध्ययन के संदर्भ में वराहमिहिराचार्य का योगदान और उनके द्वारा प्रस्तुत सिद्धांतों का वर्णन किया गया है। वराहमिहिर, जो कि एक प्रमुख ज्योतिषी थे, ने अपने समय में ज्योतिष के विभिन्न पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया और ऋतुओं के परिवर्तन को राशियों के अनुसार समझाने का प्रयास किया। उन्होंने यह बताया कि कैसे सूर्य की गति और नक्षत्रों का अध्ययन करके ऋतुओं का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। पाठ में उल्लेख किया गया है कि वराहमिहिर ने अपने ग्रंथ "पंचसिद्धान्तिका" में विभिन्न ऋतुओं के आरंभ और अंत के समय को नक्षत्रों के स्थान के अनुसार समझाया है। इसके अलावा, उन्होंने यह भी बताया है कि कैसे प्राचीन ज्योतिषियों के समय के अनुसार ऋतुओं का परिवर्तन हुआ है और वर्तमान समय के साथ उनका क्या संबंध है। इसमें यह भी बताया गया है कि वराहमिहिर के समय से लेकर अब तक, ऋतुओं के आरंभ होने का समय कैसे बदल गया है, और किस प्रकार से यह परिवर्तन विभिन्न ज्योतिषीय गणनाओं से संबंधित है। पाठ में यह भी चर्चा की गई है कि किस प्रकार से ज्योतिषीय सिद्धांतों के अनुसार समय को समझा जा सकता है और यह मानव जीवन पर कैसे प्रभाव डालता है। अंततः, यह पाठ वराहमिहिर और उनके ग्रंथों के महत्व को रेखांकित करता है, जो न केवल ज्योतिष के क्षेत्र में बल्कि भारतीय संस्कृति और विज्ञान में भी एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
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