ज्ञानयोग | GyanYog

- श्रेणी: Vedanta and Spirituality | वेदांत और आध्यात्मिकता योग / Yoga स्वसहायता पुस्तक / Self-help book
- लेखक: स्वामी विवेकानंद - Swami Vivekanand
- पृष्ठ : 342
- साइज: 10 MB
- वर्ष: 1950
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दो शब्द :
ज्ञानयोग स्वामी विवेकानंद द्वारा वेदान्त के महत्वपूर्ण तत्वों का सरल और स्पष्ट रूप में विवेचन है। इसमें स्वामीजी ने यह बताया है कि वेदान्त कैसे व्यक्तिगत और सामुदायिक जीवन को आकार देने में सहायक होता है और मनुष्य के विचारों का उच्चतम स्तर क्या है। वेदान्त के सिद्धांतों के माध्यम से मानवता की आशा, कल्याण और शांति का मार्ग प्रशस्त होता है। स्वामी विवेकानंद ने यह भी स्पष्ट किया है कि मनुष्य का असली स्वरूप दिव्य है और वेदान्त इस स्वरूप के प्रति गहन ध्यान देने की प्रेरणा देता है। इस पुस्तक में माया की भी चर्चा की गई है, जिसे वेदान्त में एक महत्वपूर्ण तत्व माना जाता है। माया का अर्थ केवल भ्रमित करने वाला नहीं है, बल्कि यह वास्तविकता को छिपाने वाले तत्व के रूप में समझा जाता है। स्वामी विवेकानंद ने माया के सिद्धांत का विश्लेषण करते हुए बताया कि कैसे मनुष्य बाहरी सुखों की खोज में भटकता है और वास्तविकता को नहीं समझ पाता। उन्होंने यह भी बताया कि माया को समझने से व्यक्ति अपने असली स्वरूप को पहचान सकता है और मुक्ति की ओर अग्रसर हो सकता है। स्वामी विवेकानंद ने ज्ञानयोग के माध्यम से यह संदेश दिया है कि आत्मा शाश्वत और मुक्त है, और यह जीवन के भौतिक बंधनों से परे है। उन्होंने संन्यास और त्याग के सिद्धांतों को उजागर किया है, जो व्यक्ति को अपने भीतर की स्वतंत्रता और सच्चे ज्ञान की ओर ले जाते हैं। यह पुस्तक न केवल वेदान्त के सिद्धांतों को समझने में सहायक है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता के प्रेमियों के लिए भी प्रेरणादायक है।
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