हमारा योग और उसके उद्देश्य | The Yoga and its Objects

By: श्री अरविन्द - Shri Arvind


दो शब्द :

इस पाठ में योग और उसके उद्देश्यों पर विचार किया गया है। लेखक, श्रीअरविन्द, योग को केवल व्यक्तिगत मुक्ति के लिए नहीं, बल्कि मानवता के लिए एक महत्वपूर्ण साधन मानते हैं। उनका कहना है कि योग का उद्देश्य भागवत आनंद को पृथ्वी पर लाना है, न कि केवल व्यक्तिगत आनंद प्राप्त करना। वे यह भी बताते हैं कि आत्मा हमेशा मुक्त है और बंधन केवल एक भ्रम है। श्रीअरविन्द ने भारत को ज्ञान और उच्चतर सिद्धांतों का भंडार बताया है, जहाँ योग की साधना का सही प्रयोग किया जा सकता है। वे यह स्पष्ट करते हैं कि अज्ञान और द्वेष के कारण मानवता को कठिनाइयाँ झेलनी पड़ती हैं, और जब ईश्वर का संकल्प होता है, तब ज्ञान का पुनर्जन्म होता है। भारत को इस ज्ञान के पुनर्स्थापन की आवश्यकता है ताकि यह मानवता को आगे बढ़ा सके। योग की साधना की प्रक्रिया में आत्मसमर्पण की आवश्यकता है। साधक को चाहिए कि वह अपने अहंकार और इच्छाओं से मुक्त होकर सिर्फ ईश्वर के संकल्प को स्वीकार करे। इसके लिए किसी भी प्रकार की मांग या शर्त नहीं रखनी चाहिए। इसके अतिरिक्त, साधक को भागवत शक्ति की क्रिया को देखने और अनुभव करने की आवश्यकता है, जो आंतरिक परिवर्तन लाएगी। इस पाठ में यह भी बताया गया है कि योग का असली उद्देश्य सामंजस्य स्थापित करना है, जो केवल बाहरी संस्थानों या धर्मों द्वारा नहीं, बल्कि आंतरिक परिवर्तन द्वारा संभव है। अंत में, साधक को विश्वास और श्रद्धा के साथ अपने मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी जाती है, ताकि वह अपने भीतर की दिव्यता को पहचान सके और उसे साकार कर सके।


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