श्रीमद्भगवद्गीता( पुरुषार्थ -बोधिनी भाषा टीका) | Shrimad Bhagavad Geeta (Purusharth Bodhini bhasha Tika )

- श्रेणी: Hindu Scriptures | हिंदू धर्मग्रंथ साहित्य / Literature
- लेखक: श्रीपाद दामोदर सातवलेकर - Shripad Damodar Satwalekar
- पृष्ठ : 969
- साइज: 927 MB
- वर्ष: 2007
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दो शब्द :
इस पाठ में भगवद गीता का महत्व और उसकी गहराई पर चर्चा की गई है। लेखक ने गीता के श्लोकों के माध्यम से बताया है कि भगवान श्रीकृष्ण जीवों के हृदय में निवास करते हैं और वे ज्ञान, स्मरण और तर्क का स्रोत हैं। गीता एक धार्मिक ग्रंथ होने के साथ-साथ मानवता के लिए एक मार्गदर्शक है। महात्मा गांधी ने गीता के संदेश को अपने जीवन में अपनाया और इसे गहनता से समझने की आवश्यकता को रेखांकित किया। पाठ में यह भी कहा गया है कि गीता के अध्ययन के बिना उसके अर्थ को समझना कठिन है। गीता के श्लोकों का अर्थ निकालने के लिए गहन मनन की आवश्यकता है, और केवल सतही अध्ययन से गीता का सही अर्थ नहीं समझा जा सकता। लेखक ने यह बताया है कि गीता के उपदेश केवल युद्ध या संघर्ष के संदर्भ में ही नहीं, बल्कि जनमानस के जीवन में नैतिक और आध्यात्मिक मार्गदर्शन के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। इसके अलावा, पाठ में 'धृतराष्ट्र' और 'हृतराष्ट्र' के माध्यम से यह बताया गया है कि मनुष्य की मानसिकता और उसकी दृष्टि कैसे उसके निर्णयों को प्रभावित करती है। धृतराष्ट्र की चिंता और उसकी स्थिति को दर्शाते हुए यह स्पष्ट किया गया है कि जब व्यक्ति अपने स्वार्थ में अंधा होता है, तो वह सही और गलत का भेद नहीं कर पाता। अंत में, पाठ में गीता के सिद्धांतों की प्राचीनता और उनके आधुनिक संदर्भ में प्रासंगिकता को उजागर किया गया है, जिससे यह प्रमाणित होता है कि गीता के उपदेश हर युग में मानवता के लिए मार्गदर्शक हैं।
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