राजयोग अर्थात मानसिक विकास | Rajyog Arthat Mansik Vikas

- श्रेणी: Ayurveda | आयुर्वेद साहित्य / Literature
- लेखक: नारायण सिंह - Prasidh Narayan Singh
- पृष्ठ : 307
- साइज: 220 MB
- वर्ष: 1920
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दो शब्द :
इस पाठ में मन की प्रकृति और उसके कार्यों का विवेचन किया गया है। मन को चेतन और अचेतन दो प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है। चेतन मन वह है जो बुद्धि द्वारा संचालित होता है, जैसे समझना, स्मरण करना, आदि। अचेतन मन वह है जो स्वाभाविक क्रियाओं को संपादित करता है, जैसे अन्न पाचन। इसके अलावा, एक तीसरी श्रेणी भी है, जिसमें अचेतन क्रियाएँ होती हैं जो हमारी उच्च मानसिक अवस्थाओं से संबंधित हैं, जैसे अंतःप्रेरणा और इल्हाम। मन में अनेक शक्तियाँ होती हैं, लेकिन वर्तमान में मानव समाज मन की उपेक्षा कर रहा है। चेतन मन की शिक्षा के लिए स्कूल और कॉलेज हैं, लेकिन अचेतन मन की दिशा में कोई ध्यान नहीं दे रहा। पाठ में बताया गया है कि असल में चेतन मन, मन का एक छोटा हिस्सा है। राजयोग का उल्लेख करते हुए, यह बताया गया है कि यदि कोई व्यक्ति अपने मन को नियंत्रित कर लेता है, तो वह आत्मा को भी वश में कर सकता है। पाठ में राजयोग के माध्यम से मन को नियंत्रित करने के उपाय बताए गए हैं, ताकि मन को सकारात्मक दिशा में मोड़ा जा सके और व्यक्ति अपनी आंतरिक शक्तियों का उपयोग कर सके। अंत में, यह कहा गया है कि मन की शक्ति का सही उपयोग करने के लिए साधना और ध्यान आवश्यक है। पाठक को मन की गहराइयों में जाकर अपनी चेतना और अचेतना को समझने की प्रेरणा दी गई है, जिससे वह अपनी मानसिक शक्तियों को पहचान सके और उन्हें सही दिशा में इस्तेमाल कर सके।
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