गीता का भक्ति योग | Gita Ka Bhakti Yog

By: अज्ञात - Unknown
गीता का भक्ति योग | Gita Ka Bhakti Yog by


दो शब्द :

इस पाठ का सारांश इस प्रकार है: श्रीमद्भगवद्गीता की महिमा और महत्व को दर्शाते हुए यह पाठ भक्तियोग पर केंद्रित है। गीता को भगवान की दिव्य वाणी बताया गया है, जिसका महत्व और गहराई अपार है। इसमें समस्त वेदों का सार समाहित है, और इसके अध्ययन से मनुष्य को नए-नए ज्ञान की प्राप्ति होती है। गीता का भक्तियोग अध्याय विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण ने अपने भक्तों के गुण और लक्षणों का वर्णन किया है। इस पाठ में गीता के बारहवें अध्याय की व्याख्या की गई है, जो भक्तियोग से संबंधित है। इसमें सगुण और निर्गुण उपासना के बीच के भेद की चर्चा की गई है। भगवान ने भक्तों के गुणों के साथ-साथ सर्वप्राणियों के कल्याण के लिए रति रखने की आवश्यकता पर बल दिया है। इसके अतिरिक्त, पाठ में यह भी बताया गया है कि कैसे साधक को अपने हृदय में आसक्ति और ममता को छोड़कर सर्वभूतहित में रत रहना चाहिए। साधक को यह समझना चाहिए कि संसार में सब कुछ ब्रह्म है, और उसे प्राणियों की सेवा में अपने कर्मों का प्रयोग करना चाहिए। इस प्रकार, पाठ में गीता के संदेश का सार प्रस्तुत किया गया है, जिसमें भक्तियोग, ज्ञान, ध्यान और सेवा का समन्वय किया गया है, जिससे साधक को मोक्ष की प्राप्ति की दिशा में प्रेरित किया जा सके।


Please share your views, complaints, requests, or suggestions in the comment box below.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *