सुत्तपिटकाका दीर्घ - निकाय | Suttapitaka Ka Dirgh - Nikaya

- श्रेणी: धार्मिक / Religious बौद्ध / Buddhism साहित्य / Literature
- लेखक: महेन्द्रनाथ पाण्डेय - Mahendranath Pandey
- पृष्ठ : 378
- साइज: 19 MB
- वर्ष: 1936
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दो शब्द :
इस पाठ में दीघ-निकाय के सुत्तपिटक का परिचय दिया गया है। यह बौद्ध धर्म के ग्रंथों में से एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। दीघ-निकाय को सुत्तपिटक के पांच निकायों में पहला माना जाता है। इसके अनुवादक राहुल सांकृत्यायन और मिन्नु जगदीश काश्यप हैं। प्रकाशन के पीछे महाबोधि सभा का योगदान है, जो सारनाथ में स्थित है। पाठ में बताया गया है कि बौद्ध धर्म में निर्वाण के दो सौ पचास वर्ष बाद अठारह निकाय विकसित हुए, जिनमें से अधिकांश लुप्त हो गए हैं। केवल एक स्थविरवाद (थेरवाद) जीवित रहा है, जिसका पिटक पाली भाषा में है। दीघ-निकाय का अनुवाद पाली से हिंदी में किया गया है, और इसके सूत्रों में विभिन्न धार्मिक और दार्शनिक मतों का उल्लेख किया गया है। अनुवादक ने यह भी उल्लेख किया है कि दीघ-निकाय के विभिन्न सूत्रों का अनुवाद समय-समय पर किया गया है। पाठ में बौद्ध साहित्य के महत्व को भी रेखांकित किया गया है और पाठकों से इस दिशा में आर्थिक सहायता की अपील की गई है ताकि अन्य बौद्ध ग्रंथों का भी अनुवाद किया जा सके। साथ ही, पाठ में दीघ-निकाय के सुत्तों की विषय-सूची भी दी गई है, जिसमें शील, ध्यान, और ज्ञान के विभिन्न पहलुओं का समावेश है। यह सुत्त बौद्ध धर्म के नैतिक और ध्यान संबंधी शिक्षाओं का संग्रहित रूप हैं। इस प्रकार, यह पाठ बौद्ध धर्म के सिद्धांतों, ग्रंथों और उनके अनुवाद के महत्व को उजागर करता है।
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