कबीर समग्र खंड-१ | Kabir Samagra Khand-1

- श्रेणी: भक्ति/ bhakti साहित्य / Literature
- लेखक: कबीरदास - Kabirdas
- पृष्ठ : 984
- साइज: 44 MB
- वर्ष: 1990
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दो शब्द :
सत कबीर का साहित्य न केवल मध्यकाल के हिंदी साहित्य पर प्रभाव डालता है, बल्कि आज भी उनके विचारों एवं रचनाओं की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है। वे अब एक अंतरराष्ट्रीय कवि और दार्शनिक के रूप में सम्मानित हैं। उनके काव्य में भौतिक सुखों के बंधन से मुक्ति, त्याग, और साधना का संदेश है। कबीर ने भोग की तुच्छता का अनुभव किया और यह बताया कि भोग और सुख का आकर्षण एक सीमा तक ही होता है। उन्होंने त्याग और तपस्या को महत्व दिया, जिससे जीवन में एक विराटता और गहराई आती है। कबीर का काव्य भोग विरोधी है और वे योग और भक्ति के प्रबल पक्षधर हैं। उनका ज्ञान उच्च स्तर का है, जिसमें वेदांत दर्शन और पुराकथाओं की गहराई है। कबीर की रचनाएँ मौखिक परंपरा के माध्यम से सुरक्षित रहीं हैं और उनके विचारों का विस्तार हुआ है। उनकी कृतियाँ साखी, सवदी और रमैनी के अंतर्गत आती हैं, जिनमें विभिन्न भाषाओं और शैलियों का समावेश है। कबीर की रचनाओं में विविधता है, लेकिन उनके भावों में कोई विपरीतता नहीं है। सभी रचनाएँ उनके केंद्रीय विचारों को पुष्ट करती हैं। उनकी भाषा में विभिन्न क्षेत्रीय प्रभाव हैं, जो उनके पाठों की प्रामाणिकता और विविधता को दर्शाते हैं। इस संग्रह में कबीर की रचनाओं का ध्यान उनकी काव्य सौंदर्य और दार्शनिक उपलब्धियों पर केंद्रित किया गया है, जिससे यह संग्रह अन्य संग्रहों से विशिष्ट बनता है। प्रकाशक इस महत्वपूर्ण पुस्तक को न्यूनतम मूल्य पर उपलब्ध कराने पर गर्व महसूस कर रहा है, जिससे कबीर साहित्य का प्रचार और प्रसार हो सके।
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