दो शब्द :

इस पाठ में "भगवद्गीता का योग" नामक पुस्तक का परिचय और उसकी पृष्ठभूमि दी गई है। लेखक ने इस पुस्तक के निर्माण की प्रक्रिया, इसके उद्देश्य और सामग्री के बारे में जानकारी प्रदान की है। पुस्तक का प्रारंभ एक लेखमाला से हुआ, जिसे बाद में विस्तारित करके गीता पर टीका लिखा गया। लेखक ने गीता के विभिन्न पहलुओं को समझाने का प्रयास किया है, और इस कार्य में अन्य सहयोगियों का भी उल्लेख किया है जिन्होंने उसकी सहायता की। पुस्तक में गीता के श्लोकों का विश्लेषण किया गया है, जिससे पाठक को गीता के गूढ़ ज्ञान और योग के महत्व को समझने में मदद मिलेगी। लेखक ने गीता को एक सार्वभौमिक आध्यात्मिक ग्रंथ के रूप में प्रस्तुत किया है, जो सभी मानव जाति के लिए प्रेरणा स्रोत है। लेखक ने यह भी बताया है कि गीता के प्रति विभिन्न विचारधाराओं का दृष्टिकोण कैसे है और किस प्रकार विभिन्न टीकाकारों ने इसे अपने अपने सिद्धांतों के अनुसार व्याख्यायित किया है। अंत में, लेखक ने गीता के प्रति अपनी श्रद्धा और इसके अध्ययन के महत्व को रेखांकित किया है, जो इसे आज भी प्रासंगिक बनाता है। इस प्रकार, यह पाठ गीता के गहरे ज्ञान को समझने और उसके अध्ययन की प्रेरणा प्रदान करता है।


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