योग-समन्वय (पूर्वार्द्ध) | The synthesis of Yoga( part 1&2)

- श्रेणी: योग / Yoga शिक्षा / Education साहित्य / Literature
- लेखक: श्री अरविन्द - Shri Arvind
- पृष्ठ : 589
- साइज: 11 MB
- वर्ष: 1969
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दो शब्द :
इस पाठ में योग और समन्वय के महत्व पर चर्चा की गई है। इसे शिक्षा और समाज के विकास के संदर्भ में पेश किया गया है। भारतीय योग परंपरा के गहरे ज्ञान और अभ्यास की आवश्यकता को बताया गया है, ताकि मानवता की उच्चतम संभावनाओं को साकार किया जा सके। पाठ की प्रस्तावना में बताया गया है कि भारत सरकार ने शिक्षण सामग्री को वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली के माध्यम से मानकीकरण करने का प्रयास किया है। यह कार्य विभिन्न भाषाओं में प्रामाणिक पाठों के अनुवाद और प्रकाशन के माध्यम से किया जा रहा है। योग को एक साधन के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं को समन्वित कर सकता है। यह मनुष्य को अपनी आंतरिक शक्तियों को पहचानने और विकसित करने में मदद करता है। योग का उद्देश्य न केवल आत्मज्ञान प्राप्त करना है, बल्कि इसे सामूहिक जीवन के प्रवाह में योगदान देने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है। पाठ में यह भी उल्लेख किया गया है कि वर्तमान समय में विचार और कार्यों का समन्वय आवश्यक है, जिससे जीवन में संतुलन और समृद्धि लाई जा सके। योग के माध्यम से मनुष्य अपनी आंतरिक और बाह्य दुनिया के बीच एक सुसंगत संबंध स्थापित कर सकता है। इस प्रकार, योग और समन्वय के सिद्धांत केवल व्यक्तिगत विकास के लिए नहीं, बल्कि समाज के सामूहिक उत्थान के लिए भी आवश्यक हैं।
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