भद्रबाहु संहिता | bhadrabahu Samhita

- श्रेणी: जैन धर्म/ Jainism धार्मिक / Religious
- लेखक: नेमिचंद शास्त्री - Nemichand Shastri साहु शांति प्रसाद जैन - Sahu Shanti Prasad Jain
- पृष्ठ : 482
- साइज: 20 MB
- वर्ष: 1959
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दो शब्द :
इस ग्रंथ में प्राचीन जैन साहित्य का समावेश है, जिसमें प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, हिंदी, कन्नड, तमिल आदि भाषाओं में उपलब्ध विभिन्न विषयों का अध्ययन और संपादन किया जाएगा। ग्रंथमाला का उद्देश्य आगमिक, दाशनिक, पौराणिक, साहित्यिक और ऐतिहासिक जैन ग्रंथों का प्रकाशन करना है, साथ ही जैन भंडारों की सूचियाँ, शिलालेख संग्रह, विशिष्ट विद्वानों के अध्ययन ग्रंथ और लोकहितकारी साहित्य भी प्रकाशित किया जाएगा। ज्योतिष शास्त्र की प्राचीनता और इसकी विभिन्न शाखाओं पर चर्चा की गई है। इसमें गणित ज्योतिष और फलित ज्योतिष का उल्लेख किया गया है। गणित ज्योतिष विज्ञान पर आधारित है और फलित ज्योतिष में ग्रहों की स्थिति के आधार पर भविष्यवाणियाँ की जाती हैं। भारत में ज्योतिष का विकास प्राचीन काल से हुआ है और इसके साहित्य में भिन्नता पाई जाती है। ज्योतिष के तीन मुख्य भेद हैं: सिद्धांत, संहिता और होरा। संहिता ग्रंथों का विकास जीवन के व्यावहारिक क्षेत्र में ज्योतिष संबंधी तत्वों की स्थापन के लिए किया गया है, जिसमें कृषि से संबंधित विभिन्न ज्ञान और विभिन्न प्रकार के निमित्तों का वर्णन है। इस ग्रंथ में भद्दबाहुसंहिता का विशेष उल्लेख है, जो जैन शास्त्र के अंतर्गत आती है। इस ग्रंथ के संपादक ने प्राचीन हस्तलिखित प्रतियों का उपयोग किया है और मूल संस्कृत पद्यों का अनुवाद भी किया है। ग्रंथ का उद्देश्य जैन ज्योतिष की परंपरा और इसके महत्व को उजागर करना है।
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