आंख की किरकिरी | Aankh Ki Kirkiri

By: धन्यकुमार जैन 'सुधेश' - Dhanyakumar Jain 'Sudhesh'
आंख की किरकिरी | Aankh Ki Kirkiri by


दो शब्द :

"आँख की किरकिरी" उपन्यास की कहानी महेन्द्र नामक युवक के इर्द-गिर्द घूमती है, जो अपने जीवन में विवाह के प्रति अनिच्छा और सामाजिक दबावों का सामना कर रहा है। महेन्द्र, जो बचपन से ही पितृहीन है, अपनी माँ राजलक्ष्मी के साथ रहता है। माँ चाहती है कि महेन्द्र का विवाह हो, लेकिन महेन्द्र इस विषय में उदासीन है और विवाह के लिए किसी भी प्रकार का दबाव सहन नहीं कर पाता। राजलक्ष्मी अपनी सहेली विनोदिनी के लिए महेन्द्र का विवाह तय करने का प्रयास करती है। विनोदिनी एक शिक्षित और सुंदर लड़की है, जिसे उसकी माँ ने पढ़ाई के लिए मेहनत से तैयार किया है। लेकिन महेन्द्र की सोच अलग है। वह शादी के विचार से घबराता है और अंततः विनोदिनी से विवाह करने के लिए तैयार नहीं होता। महेंद्र की यह अनिच्छा उसके व्यक्तित्व का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन जाती है। वह सोचता है कि अगर वह विवाह करेगा तो उसकी स्वतंत्रता खत्म हो जाएगी और वह अपने जीवन में बदलाव नहीं चाहता। उसकी माँ और अन्य रिश्तेदारों की इच्छाएँ उसे दुविधा में डाल देती हैं, लेकिन महेन्द्र अपनी माँ के प्रति प्रेम और दायित्व का भी अनुभव करता है। कहानी में महेन्द्र का संघर्ष, उसकी अनिच्छा, और सामाजिक अपेक्षाओं के बीच की खींचतान को दर्शाया गया है। यह उपन्यास विवाह और पारिवारिक संबंधों की जटिलताओं को उजागर करता है, साथ ही महेन्द्र के मानसिक और भावनात्मक द्वन्द्व को भी प्रदर्शित करता है। महेन्द्र के चरित्र के माध्यम से रवींद्रनाथ ठाकुर ने आधुनिकता और पारंपरिक मूल्यों के टकराव को गहराई से दिखाया है।


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