गढ़ कुंडार | Garh Kundar

By: वृन्दावनलाल वर्मा - Vrindavanlal Varma
गढ़ कुंडार | Garh Kundar by


दो शब्द :

यह पाठ "गढ़-कुंडार" उपन्यास का उल्लेख करता है, जिसमें लेखक श्री दुलारेलाल वर्मा और भूमिका लेखक श्री सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' हैं। उपन्यास की पृष्ठभूमि बुंदेलखंड के ऐतिहासिक संदर्भ में है, जिसमें गोंडों के साम्राज्य से लेकर चंदेलों के उत्थान और उनके बाद प्रथ्वीराज चौहान की विजय की कहानी है। इसमें बताया गया है कि किस प्रकार कुडार का गढ़ खंगार राजाओं के अधीन आया और कैसे मुस्लिम आक्रमणों के बावजूद यह क्षेत्र स्वतंत्र रहा। राजाओं और सामंतों के बीच के संबंधों का भी उल्लेख किया गया है। पाठ में खंगारों के अंतिम राजा हुस्मतसिंह, उनके बेटे नागदेव और बुदेलों के बीच विवाह संबंधों की चर्चा है, जिसमें बुदेलों द्वारा खंगारों के साथ विवाह की रीतियों को मानने से इंकार करने का उल्लेख है। इसके साथ ही, पाठ में हिंदी साहित्य में दुलारेलालजी के योगदान का भी उल्लेख है, जिसमें उन्होंने कई प्रमुख लेखकों और कवियों को प्रोत्साहित किया और हिंदी के प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह उपन्यास हिंदी साहित्य की सेवा और विकास के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है।


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