अथर्ववेदिया मंत्रविद्या | Atharvavediya Mantravidhya

By: प्रियरत्न आर्ष - Priyratn Aarsh
अथर्ववेदिया मंत्रविद्या | Atharvavediya Mantravidhya by


दो शब्द :

इस पाठ में "अथर्ववेदीय मन्त्रविद्या" पर चर्चा की गई है, जिसमें लेखक ने अथर्ववेद के विभिन्न तान्त्रिक विषयों जैसे जादू, टोने, गण्डा-तावीज, और अभिचार का विवेचन किया है। लेखक ने यह प्रमाणित करने का प्रयास किया है कि ये सभी विषय केवल अंधविश्वास नहीं हैं, बल्कि वेदों में इनके उपयोग के पीछे वैज्ञानिक कारण हैं। पाठ में लेखक ने विभिन्न प्रकार की प्रक्रियाओं और उनके औषधीय गुणों का उल्लेख किया है, जैसे मणियों का उपयोग, आदेश देने की विधियाँ, और कृत्या का स्वरूप। उन्होंने यह भी बताया है कि कैसे ये विधियाँ शारीरिक और मानसिक रोगों के उपचार में सहायक हो सकती हैं। लेखक ने अपने शोध और अनुभव के आधार पर यह सिद्ध किया है कि ये विद्या न केवल प्राचीन भारतीय संस्कृति का हिस्सा हैं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण हैं। पाठ के अंत में लेखक ने इस ग्रंथ के माध्यम से वेदों की गहरी समझ को साझा करने की कोशिश की है, जिससे पाठक इन्हें आत्म-कल्याण के लिए उपयोग कर सकें। कुल मिलाकर, यह पाठ अथर्ववेद की मन्त्रविद्या को समझने और उसके वास्तविक स्वरूप को उजागर करने का प्रयास है, जिसमें इसे आधुनिक विज्ञान के संदर्भ में प्रस्तुत किया गया है।


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