प्रतिष्ठा प्रदीप | Pratishtha pradeep

- श्रेणी: जैन धर्म/ Jainism धार्मिक / Religious
- लेखक: नाथूलाल जैन शास्त्री - Nathulal Jain Shastri
- पृष्ठ : 298
- साइज: 10 MB
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दो शब्द :
इस पाठ में जैन धर्म में प्रतिष्ठा की विधि-विधान के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है। लेखक नाथलाल जन शास्त्री ने प्रतिष्ठा के महत्व और उसके विभिन्न पहलुओं को स्पष्ट किया है। प्रतिष्ठा का उद्देश्य सामाजिक शांति और कल्याण की प्राप्ति है, जिसे आचार्य जमसेन के विचारों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। प्रतिष्ठा के समय विभिन्न मंत्रों और सामग्री का उपयोग किया जाता है, जो जैन पूजा पद्धति की प्राचीनता को दर्शाता है। पाठ में बताया गया है कि प्रतिष्ठा के दौरान जिन मूर्तियों की स्थापना की जाती है, उनके माता-पिता, वंश, और अन्य विवरणों का महत्व होता है। इसके अलावा, जैन उपासना में भोग का प्रयोग नहीं किया जाता, बल्कि द्रव्यों को निर्माल्य माना जाता है। यह प्रतिष्ठा विधि शांति, अहिंसा, और आत्मा के गुणों की प्राप्ति की प्रेरणा देती है। लेखक ने अपने अनुभवों का उल्लेख करते हुए कहा है कि उन्होंने प्रतिष्ठा कार्य में कई वर्षों तक अध्ययन और अनुभव प्राप्त किया है। उन्होंने प्रतिष्ठा के दौरान विभिन्न विधियों और मंत्रों के महत्व को समझाते हुए समाज में इस विषय पर जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता पर बल दिया है। अंत में, उन्होंने प्रतिष्ठा विधि को सरल और सुसंगत तरीके से प्रस्तुत करने का प्रयास किया है, ताकि यह विधि समाज के लिए उपयोगी हो सके।
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