वासवदत्ता का चित्रलेख | Vasavdatta ka Chitralekh

- श्रेणी: कहानियाँ / Stories साहित्य / Literature
- लेखक: भगवतीचरण वर्मा - Bhagwati Charan Verma
- पृष्ठ : 210
- साइज: 9 MB
- वर्ष: 1954
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दो शब्द :
वासवदत्ता का चित्रालेख एक कहानी है जो मथुरा की नर्तकी वासवदत्ता और भिक्षु उपगुप्त के बीच के संबंधों पर केंद्रित है। लेखक भगवती चरण वर्मा ने इस कहानी को 1647 में लिखा था, जब उन्हें कहानी की आवश्यकता थी। कहानी में वासवदत्ता एक प्रसिद्ध नर्तकी है, जो मथुरा के राजा की प्रेयसी है। उसका जीवन भक्ति और कला में समर्पित है, लेकिन उसकी कहानी में संघर्ष और प्रेम का एक अद्भुत ताना-बाना है। कहानी की शुरुआत वासवदत्ता के जुलूस से होती है, जब वह शक्ति की उपासना के लिए मंदिर जाती है। वहीं, उपगुप्त उसके सौंदर्य की उपेक्षा करते हुए अपने उपदेश का कार्य करता है, जिससे वासवदत्ता का मन उसकी ओर आकर्षित होता है। उपगुप्त उसे यह कहकर अस्वीकार करता है कि वह केवल तब आएगा जब वासवदत्ता को उसकी आवश्यकता होगी। कहानी में वासवदत्ता की स्थिति बदलती है जब वह बीमार होती है और नगरवासियों द्वारा त्याग दी जाती है। उपगुप्त उसकी सहायता करता है, लेकिन उसे यह समझने में देर होती है कि वासवदत्ता का सौंदर्य और युवावस्था नष्ट हो रही है। इसके बाद, वासवदत्ता घनराज नामक एक सेठ के प्रति आकर्षित होती है, जो उसकी सुंदरता के जाल में फंसकर उसे काशी ले जाता है। घनराज की पत्नी रंजना वासवदत्ता के कारण चिंतित होती है और उपगुप्त से मदद मांगती है। उपगुप्त घनराज को बताता है कि वासवदत्ता उससे प्रेम नहीं करती, और यह साबित करने में सफल होता है। लेकिन वासवदत्ता को पता चलता है कि वह उपगुप्त को खो चुकी है और इस से उसकी प्रतिशोध की भावना जाग्रत होती है। वासवदत्ता मथुरा लौटती है और बलि-प्रदान की योजना बनाती है, जिससे नगर में विद्रोह हो जाता है। अंततः, जनता उसे उसकी दुष्कृत्यों के लिए दंडित करती है और उपगुप्त उसे बचाने आता है। कहानी का
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