विश्वासघात | Vishwasghat

- श्रेणी: उपन्यास / Upnyas-Novel साहित्य / Literature
- लेखक: गुरुदत्त - Gurudutt
- पृष्ठ : 378
- साइज: 5 MB
- वर्ष: 1957
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दो शब्द :
इस पाठ में "विश्वासघात" शीर्षक के अंतर्गत, लेखक ने गंगा नदी और उसकी पवित्रता के संदर्भ में विचार प्रस्तुत किए हैं। लेखक गंगा के जल की तुलना करता है, जो वर्तमान में गंदगी और कचरे से भरा हुआ है, जबकि प्राचीन समय में इसे पवित्र माना जाता था। वह यह सवाल उठाता है कि क्या यह वही गंगा है, जो अपने पवित्र जल के लिए जानी जाती थी। लेखक ने यह भी उल्लेख किया है कि गंगा की पवित्रता के पीछे उसके स्रोत की महिमा है और यह केवल बाहरी रूप से ही नहीं, बल्कि आंतरिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। उन्होंने भारतीय संस्कृति और धार्मिकता के संदर्भ में यह बताया है कि जब भी भारतीय सभ्यता ने अपनी महानता को छोड़कर विदेशी प्रभाव को स्वीकार किया, तब वह अपने मूल से दूर हो गई और पतन की ओर बढ़ी। विभिन्न पात्रों के माध्यम से, लेखक ने यह स्पष्ट किया है कि समकालीन समाज में कचरे और गंदगी की भरमार है, जो कि पवित्रता की धारणा को प्रभावित कर रही है। इसके साथ ही, वह भारतीय संस्कृति की गहराई और उसकी सच्चाई को भी उजागर करता है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि वास्तविक पवित्रता और आचरण में गहरा संबंध है। लेखक ने यह भी बताया कि यह उपन्यास ऐतिहासिक घटनाओं और पात्रों के माध्यम से एक सन्देश देने का प्रयास है, जिसमें भारतीय संस्कृति की गहराई और उसकी पवित्रता को पुनर्जीवित करने का आग्रह किया गया है।
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