उतिष्ठत जाग्रत | Utishthat Jagrata

- श्रेणी: Vedanta and Spirituality | वेदांत और आध्यात्मिकता दार्शनिक, तत्त्वज्ञान और नीति | Philosophy
- लेखक: स्वामी विवेकानंद - Swami Vivekanand
- पृष्ठ : 188
- साइज: 8 MB
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दो शब्द :
इस पाठ में स्वामी विवेकानंद की विचारधारा और उनके योगदान को प्रदर्शित किया गया है। विवेकानंद के उपदेशों और शिक्षाओं को पुनर्जीवित करने के लिए "अंतरराष्ट्रीय युवा वर्ष" के अवसर पर इस पुस्तक का प्रकाशन किया गया है। यह पुस्तक स्वामी विवेकानंद के जीवन, उनके संदेश और भारतीय संस्कृति के उत्थान के लिए उनके दृष्टिकोण पर केंद्रित है। स्वामी विवेकानंद का मानना था कि एक शक्तिशाली राष्ट्र का निर्माण करने के लिए शारीरिक, मानसिक और इच्छाशक्ति की आवश्यकता है। उन्होंने भारतीय समाज को जागरूक करने और उसे सशक्त बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया। उनके विचारों में आत्मविश्वास, आत्मज्ञान और धर्म के महत्व को रेखांकित किया गया है। उन्होंने भारतीय संस्कृति को उसके मूल सिद्धांतों के आधार पर पुनर्निर्माण करने की आवश्यकता बताई। पाठ में विवेकानंद के विचारों को वर्तमान समय की चुनौतियों के संदर्भ में महत्वपूर्ण माना गया है, जैसे कि राष्ट्रीय एकता और आत्म-निरीक्षण। उन्होंने कहा कि अज्ञानता और मानसिकता के दोषों से मुक्ति पाकर ही समाज को एकजुट किया जा सकता है। स्वामी विवेकानंद का संदेश आज भी प्रासंगिक है, विशेषकर जब देश कठिनाइयों का सामना कर रहा है। पुस्तक में चार मुख्य हिस्से हैं: संदेश, भाषण, चिंतन, और मानव निर्माण। प्रत्येक भाग में विवेकानंद के विचारों का संकलन किया गया है, जो उनके दृष्टिकोण को स्पष्ट करते हैं। प्रकाशक का उद्देश्य पाठकों को स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं का विस्तृत अध्ययन करने के लिए प्रेरित करना है, ताकि वे उनके विचारों से लाभ उठा सकें। इस प्रकार, यह पाठ स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं और उनके विचारों के महत्व को प्रस्तुत करता है, जो आज के समय में भी समाज के लिए प्रेरणादायक हैं।
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